________________
४४४
नव पदार्थ
५६. आश्रव घटीयां संवर वधे में, संवर घटीयां आश्रव वधांणों रे।
किसो दरब घटीयो ने वधीयो, इण ने रूडी रीत पिछांणो रे।।
५७. इविरत उदे भाव घटीयां सूं, विरत वधे छे षय उपसम भावो रे।
ए जीव तणा भाव वधीयां ने घटीयां, आश्रव जीव कह्यों इण न्यावो रे।।
५८. सतरे भेद असंजम ते इविरत आश्रव, ते आश्रव ने निश्चे जीव जांणों रे।
सतरे भेद संजम ने संवर कह्यों जिण, ए तो जीव रा लषण पिछांणो रे।।
५६. आश्रव नें जीव सरधावण काजे, जोड कीधी पाली मझारोरे।
संवत अठारे वरस पचावनें आसोज सुद चवदस मंगलवारो रे।।