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नव पदार्थ
थी। एक बार अपापा नगरी में सोमिल नाम के एक धनी ब्राह्मण ने यज्ञ किया जिसमें उसने गौतम, सुधर्मा आदि उस समय के ग्यारह सुप्रसिद्ध वेदविद्-ब्राह्मणों को निमन्त्रित किया। इसी अरसे में भगवान महावीर भी विचरते हुए उस जगह आ पहुँचे। भगवान के दर्शन के लिये जनता उमड़ पड़ी। यथ-स्थान छोड़कर लोग उनके दर्शन के लिए जाने लगे। उनका यह आदर और प्रभाव गौतम को सह्य नहीं हुआ और वे उन्हें तत्त्व-चर्चा में हराने के लिये उनके पास गये। भगवान महावीर अपने ज्ञान-बल से गौतम की शंका से पहले से ही जान चुके थे। दर्शन करते ही गौतम की शंकाओं का निराकरण कर दिया। विजित गौतम ने अपने शिष्यों सहित तीर्थंकर भगवान महावीर की शरण ली और उनके संघ में शामिल हो गये। महावीर ने उन्हें गणधर बनाया। उन्होंने जीवनपर्यन्त बड़े उत्कट भाव से भगवान महावीर की पर्युपासना की। भगवान के प्रति भक्ति-जन्य मोह के कारण उन्हें शीघ्र केवलज्ञान प्राप्त न हो सका। अपने जीवन के शेष दिन भगवान ने गौतम को दूर भेज दिया। निर्वाण-समय दूर रहने से गौतम उनसे मिल न सके। जिससे उन्हें बड़ा दुःख हुआ। वे मोह-विहल हो विलाप करने लगे। ऐसा करते-करते ही उनका ध्यान फिरा। निर्मोही भगवान के प्रति इस मोह की निरर्थकता से समझ गये। वे अपनी मोह-विह्वला के लिये पश्चाताप करने लगे। ऐसा करते ही अज्ञान के बादल फटे और उन्हें निरावरण केवलज्ञान प्राप्त हुआ। गौतम प्रभु भगवान महावीर के निर्वाण के बाद कोई १२ वर्ष तक जीवित रहे। वे बड़े ज्ञानी, ध्यानी, भद्र और तपस्वी मुनि थे।
गणधर गौतम भगवान महावीर से नाना प्रकार के तात्त्विक प्रश्न करते रहते और भगवान उनका ज्ञान-गंभीर उत्तर देते। तत्त्वों का सारा ज्ञान इसी तरह के संवादों सामने आया। भगवान से तत्त्व खुलासा करवाने में गणधर गौतम का सर्वप्रधान हाथ रहा। इसीलिये नव तत्त्वों की चर्चा करते हुए स्वामी जी द्वारा तीर्थंकर महावीर के साथ उन्हें भी नमस्कार किया गया है। (देखिए दो० १, २)।
३. नव पदार्थ
पदार्थ का अर्थ-सद् वस्तु । नव पदार्थों के नाम इस प्रकार हैं। : १. जीव ४. पाप
७. बंध २. अजीव
५. आश्रव ३. पुण्य ६. संवर
६. मोक्ष
८. निर्जरा
१. ठाणाङ्ग ६, ८६७ : नव सब्भावपयत्था प० सं० जीवा अजीवा पुण्णं पावो आसवो सवरो
णिज्जरा बंधो मोक्खो