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________________ ४४० नव पदार्थ ४०. भला भंडा परिणाम भली भंडी लेस्या, भला मुंडा जोग छे तांमो रे। __ भला भूडा अधवसाय भला मुंडा ध्यान, ए जीव तणा परिणामो रे।। ४१. भला भंडा भाव जीव तणा छे, भंडा पाप रा बारणा जाणों रे। __भला भाव तो छ संवर निरजरा, पुन सहजे लागे छे आंणो रे।। ४२. निरजरा री निरवद करणी करतां, करम तणो खय जांणों रे। जीव तणा परदेस चले छे, त्यां सूं पुन लागे , आणो रे।। ४३. निरजरा री करणी करें तिण काले, जीव रा चले सर्व परदेसो रे। जब सहचर नाम करम सूं उदे भाव, तिण सूं पुन तणो परवेसो रे।। ४४. मन वचन काया रा जोग तीनूंइ, पसत्थ ने अपसत्थ चाल्या रे। अपसत्थ जोग तो पाप नां दुवार, पसत्थ निरजरा री करणी में घाल्या रे।। . ४५. अपसत्थ दुवार ने रूंधणा चाल्या, पसत्थ उदीरणा चाल्या रे। रूंघतां ने उदीरतां निरजरा री करणी, पुन लागे तिण सूं आश्रव में घाल्या रे।। ४६. पसत्थ नें अपसत्थ जोग तीनूंइ, त्यांरा बासठ भेद , ताह्यो रे। ते सांवद्य निरवद जीव री करणी, सूतर उवाइ रे मांह्यो रे।। ४७. जिण कह्यों सतरे भेद असंजम, असंजम ते इविरत जांगों रे। इविरत ते आसा वंछा जीव तणी छे, तिणनें रूडी रीत पिछांणो रे।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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