SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 461
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३६ नव पदार्थ २६. करमां रो करता तो जीव दरब छ, कांधा हुवा ते करमो रे। करम ने करता एक सरधे ते, भूला अग्यांनी भर्मो रे।। २७. अठारे पाप ठाणा अजीव चोफरसी, ते उदे आवे तिण वारो रे। जब जूजूआ किरतब करें अठारो, ते अठारेंइ आश्रव दुवारो रे।। २८. उदे आया ते तो मोह करम छे, ते तो पाप रा ठाणा अठारो रे। त्यांरा उदा सूं अठारेंइ किरतब करें छे ते जीव तणो में व्यापारो रे ।। २६. उदे ने किरतब जूआजूआ छ, आ तो सरधा सूधी रे। उदे ने किरतब एकज सरधे, अकल तिणारी उंधी रे।। ३०. परणातपात जीव री हिंसा करें ते, परणातपात आश्रव जांणों रे। उदे हुवो ते परणातपात ठांणो छे, त्यांने रूडी रीत पिछांणो रे।। ३१. झूठ बोलें ते मिरषावाद आश्रव छे, उदे , ते मिरषावाद ठांणो रे। झूठ बोलें ते जीव उदे हुवा करम, यां दोयां नें जूआजूआ जाणों रे।। ३२. चोरी करें ते अदत्तादांन आश्रव छे, उदे ते अदत्तादांन ठांणो रे। ते उदे आयां जीव चोरी करें छे, ते तो जीव रा लषण जांणों रे।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy