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________________ टिप्पणियाँ १. वीर प्रभू : वीर प्रभू अर्थात् तीर्थंकर महावीर | आपका नाम 'नाय'-'ज्ञातृ' नामक क्षत्रिय राजवंश में हुआ था। आप काश्यप गोत्रीय थे। आपके पिता का नाम राजा सिद्धार्थ था। आपका जन्म वैशाली नगरी के राजा चेटक की बहिन वाशिष्ट गोत्री त्रिशला देवी की कुक्षि से हुआ था। जैनियों की मान्यता है कि महावीर पहले ऋषभदत्त ब्राह्मण के घर देवानन्दा ब्राह्मणी की कोख में अवतरित हुए थे, परन्तु एक देव विशेष ने बाद में उन्हें त्रिशला देवी की कुक्षि में धर दिया था। आपका जन्म वैशाली नगरी के क्षत्रिय सन्निवेश में, जो कि ब्राह्मण कुण्डपुर के उत्तर की ओर पड़ता था, चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को हुआ था। जब से आप त्रिशला देवी की कुक्षि में आये तब से कुल में धन-धान्य, सोने-चाँदी आदि की विशेष वृद्धि होने से माता-पिता ने आपका नाम वर्द्धमान रक्खा । आपके चाचा का नाम सुपार्श्व, ज्येष्ठ भाई का नाम नन्दिवर्द्धन और बड़ी बहिन का नाम सुदर्शना था। आपकी भार्या का नाम यशोदा था, जो कौंडिन्य गोत्री थी। आपके एक पुत्री हुई थी, जिसका नाम प्रियदर्शना था। एक दौहित्री भी थी जिसका नाम यशोमती था। . महावीर के माता-पिता पार्श्वनाथ भगवान की परम्परा के श्रमणों के श्रद्धालु श्रावक थे। उन्होंने बहुत वर्षों तक श्रमणोपाशक धर्म का पालन कर अन्त में संल्लेखना कर देह-त्याग किया था। माता-पिता के दिवंगत होने के बाद महावीर ने दीक्षा लेने के विचार किया, परन्तु बड़े भाई नदिवर्द्धन के आज्ञा न देने और उनके आग्रह से व दो वर्षों तक और गृहस्थाश्रम में रहे। बाद में ३० वर्ष की पूर्ण यौवनास्था में उन्होंने दीक्षा ग्रहण की। आपकी दीक्षा विजय मुहूर्त में,उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के योग में, मार्ग शीर्ष बदी १० के दिन क्षत्रिय कुण्डपुर सन्निवेश के बाहर ज्ञातृवंशी क्षत्रियों के बनखण्ड उद्यान में हुई। महावीर ने सर्व अलंकार उतार डाले तथा दायें हाथ से दाईं और बायें हाथ से बाईं ओर के केशों की पंचमुष्टि लोंच की अर्थात् अपने हाथ से अपने सर्व केश उखाड़ डाले। फिर पूर्वाभिमुख हो सिद्धों को नमस्कार कर व्रत ग्रहण किया-“मैं सर्व सावद्य कार्यों का त्याग करता हूँ।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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