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________________ आस्त्रव पदार्थ (ढाल : १) : टिप्पणी ३७ ४१३ जो मिथ्यात्वी आदि होते हैं उनके ही मिथ्यात्व आदि छिद्र हैं। जैसे नौका का छिद्र नौका से भिन्न नहीं होता वैसे ही मिथ्यात्व आदि मिथ्यात्वी से भिन्न नहीं होते, तद्रूप होते हैं। मिथ्यात्व मिथ्यात्वी जीव के होता है, वह उसका भाव है। अविरति अविरत जीव के होती है, वह उसका भाव है। कषाय कषायीजीव के होता है, वह उसका भाव है। योग योगीजीव के होता है, वह उसका भाव है। ये भाव उस-उस जीव के हैं और उससे अलग अपना अस्तित्व नहीं रखते; अतः जीव-परिणाम हैं, जीव हैं। ३७. आस्रव और जीव-प्रदेशों की चंचलता (गा० ५४-५६) : .. यहाँ तीन बातें सामने रखी गयी हैं : . (१) जीव के प्रदेश चंचल होते हैं | (२) जीव सर्व प्रदेशों से कर्म ग्रहण करता है। (३) अस्थिर प्रदेश आस्रव हैं और स्थिर प्रदेश संवर । नीचे इन तीनों बातों पर क्रमशः प्रकाश डाला जाता है। (१) जीव के प्रदेश चंचल होते हैं : छट्टे गणधर मंडिक ने प्रव्रज्या लेने से पूर्व अपनी शंकाएँ रखते हुए भगवान महावीर से पूछा : "आकाशादि अरूपी पदार्थ निष्क्रिय होते हैं फिर आत्मा को सक्रिय कैसे कहते हैं ? "मंडिक ! आकाशादि और आत्मा अरुपी होने पर भी आकाशादि अचेतन और आत्मा चेतन क्यों ? जिस तरह आत्मा से चैतन्य एक विशेष धर्म है उसी तरह सक्रियत्व भी उसका विशेष धर्म है। आत्मा कुंभार की तरह कर्मों का कर्ता है अतः सक्रिय है, अथवा आत्मा भोक्ता है इससे वह सक्रिय है, अथवा देह-परिस्पन्द प्रत्यक्ष होने से आत्मा सक्रिय है। जिस प्रकार यन्त्रपुरुष में परिस्पन्द देखा जाता है जिससे वह सक्रिय है इसी प्रकार आत्मा में देह-परिस्पन्द प्रत्यक्ष होने से वह भी सक्रिय है। "देह-परिस्पन्द से देह सक्रिय होता है आत्मा नहीं। "मंडिक ! देह-परिस्पन्द में आत्मा का प्रयत्न कारण होता है अतः आत्मा को सक्रिय नहीं मानना चाहिए। "प्रयत्न क्रिया नहीं होती अतः प्रयत्न के कारण आत्मा को सक्रिय नहीं माना जा सकता।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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