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________________ ४१२ 'नव पदार्थ ३५. आस्रव को अजीव मानना मिथ्यात्व है (गा० ४७-४८) : यहाँ आस्रव को अजीव सिद्ध करने की चेष्टा करने वालों के लिए स्वामीजी ने पीपल को बांधकर ले जाने का जो उदाहरण दिया है, वह इस प्रकार है : किसी सास ने अपनी बहू से कहा-"जा पीपल ले आ ?” आज्ञा पाते ही बहू पीपल लाने गई। गाँव के बीच में एक बड़ा पीपल का पेड़ था। बहू ने उसे देखा और सोचने लगी-यह बड़ा है, अतः उपयोग की दृष्टि से इसे ही ले जाना उचित है । ऐसा सोच वह उस पेड़ में रस्सी डाल कर उसे ले जाने के लिए जोरों से खींचने लगी। कुछ लोगों ने देखा और आश्चर्य से पूछा-“यह क्या कर रही हो ? वह बोली-“सास के लिए पीपल ले जा रही हूँ।" तब लोगों ने उसकी मूर्खता पर हंसते हुए कहा-"अरी ! पीपल की टहनी या पत्ते ले जाओ। पीपल का पेड़ थोड़े ही जा सकता है ! यह सुनकर वह बोली-“सास ने पीपल मंगाया है; टहनी या पत्ते नहीं। इसलिए सास से बिना पूछे मैं टहनी या पत्ते नहीं ले जाऊँगी। ऐसा कह वह सास से पूछने अपने घर गई। स्वामीजी के कथन का सार यह है कि जिस तरह उस बहिन की पीपल को बांध कर घर ले जाने की चेष्टा व्यर्थ थी वैसे ही आस्रव को अजीव ठहराने की चेष्टा निरर्थक और नासमझी की बात है। ३६. आस्रव जीव कैसे ? (गा० ४९-५३) : आस्रव पदार्थ जीव है, इस बात का प्रतिपादन स्वामीजी ने यहाँ कितनेक प्रश्नों के द्वारा किया है। स्वामीजी कहते हैं-इतनी बातों का उत्तर दो : (१) तत्त्व की विपरीत श्रद्धा कौन करता है ? (२) अत्याग भाव किसके होता है ? । (३) प्रमाद किसके होता है ? (४) कषाय किसके होता है ? (५) मन से भोगों की अभिलाषा कौन करता है ? (६) मुख से बुरा वचन कौन बोलता है ? (७) शरीर से कौन बुरी क्रिया करता है ? (८) श्रोत्र आदि इन्द्रियों को कौन विषयों में लगाता है ? विपरीत श्रद्धा, अत्यागभाव, प्रमाद, कषाय और योगप्रवृत्ति-ये सब आस्रव हैं। जीवद्रव्य के परिणाम अथवा व्यापार हैं। इन आस्रवों से जीव कर्मों को करता है। आस्रव जीव-परिणाम हैं; जीवरूप हैं।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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