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________________ ३६६ नव पदार्थ जा उ अस्साविणी नावा, न सा पारस्स गामिणी। जा निरस्साविणी नावा, सा उ पारस्स गामिणी।। ७१।। केशी बोले : "वह नौका कौन सी है ?" गौतम बोले : “यह शरीर नौका रूप है। जीव नाविक है। संसार समुद्र है। महर्षि संसार-समुद्र को तैर जाते हैं।" सरीरमाहु नाव त्ति, जीवे वुच्चइ नाविओ। संसारो अण्णवो वुत्तो, जं तरंति महेसिणो ।। ७३।। इस प्रसंग का सार है-जिस तरह आस्रवणी नौका समुद्र के उस पार नहीं पहुँचाती वैसे ही आस्रवणी आत्मा जीव को संसार-समुद्र के उस पार नहीं पहुँचाती। अतः आत्मा को निरास्रव करना चाहिए। ४. उत्तराध्ययन अ० ३५ में एक गाथा इस प्रकार है : निम्ममे निरहंकारे, वीयरागो अणासवो। संपत्तो केवलं नाणं सासयं परिणिन्बुए।। २१।। जो ममत्वरहित होता है, निरहंकार होता है, वीतराग होता है, आस्रवरहित होता है वह केवलज्ञान को पाकर शाश्वत रूप से परिनिवृत्त होता है। इस गाथा में आसन्नमुक्त आत्मा का एक प्रधान गुण आस्रवरहितता कहा गया है। २०. आस्रव जीव या अजीव (गा० २४) नौ पदार्थों में जीव कितने हैं, अजीव कितने हैं, यह एक बहुत पुराना प्रश्न है। जीव जीव है, अजीव अजीव है, अवशेष सात पदार्थों में कौन जीव कोटि का है कौन अजीव कोटि का? श्वेताम्बर-दिगम्बर दोनों ही मानते हैं कि मूल पदार्थ जीव और अजीव दो ही हैं। अन्य पदार्थ उन्हीं के भेद या परिणाम हैं'। अमृतचन्द्राचार्य लिखते हैं : "जीव अजीव दोनों पदार्थ अपने भिन्न स्वरूप के अस्तित्व से मूल पदार्थ हैं, अवशेष सात पदार्थ जीव और १. (क) द्रव्यसंग्रह २८ : आसवबंधणसंवरणिज्जरमोक्खा सपुण्णपावा जे। जीवाजीवविसेसा ते वि समासेण पभणामो।। (ख) ठाणाङ्ग ६.३.६६५ टीका : यावेव जीवाजीवपदार्थों सामान्येनोक्तौ तावेवेह विशेषतो नवधोक्तौ ।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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