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________________ ३६४ नव पदार्थ किस हेतु से कहते हैं ?" "गौतम ! एक हृद हो, वह जल से भरा हो, छलाछल भरा हो, जल से छलकता हो, जल से बढ़ता हो और भरे हुए घड़े की तरह स्थित हो अब यदि कोई एक बड़ी सौ छोटे छिद्रोंवाली और सौ बड़े छिद्रोंवाली नाव उसमें प्रविष्ट करे तो हे गौतम ! वह नाव उन आस्रवद्वारों से-छिद्रों से भराती, अधिक भराती, जल से भरी हुई, जल से छलाछल भरी हुई, जल से छलकती हुई, जल से बढ़ती हुई और अन्त में भरे घड़े की तरह स्थित होकर रहती है या नहीं।" "भन्ते ! रहती है।" "हे गौतम ! मैं इसी हेतु से कहता हूँ कि जीव और पुद्गल अन्योन्य बद्ध यावत् अन्योन्य घट होकर स्थित हैं।" स्वामीजी के कथनानुसार यह वार्तालाप भी आस्रव के स्वरूप पर सुन्दर प्रकाश डालता है। मिथ्यात्वादि आस्रव विकराल छिद्र हैं जिनसे जीव-रूपी नौका पाप-रूपी जल से छलाछल भर जाती है। भगवती सूत्र (१.६) का मूल पाठ इस प्रकार है : . अस्थि णं भंते! जीवा य, पोग्गला य अनरमन्नबद्धा, अन्नमन्नपुट्ठा, अन्नमन्नओगाढा, अण्णमण्णसिणेहपडिबद्धा अन्नमन्नघडत्ताए चिट्ठति ? हंता, अस्थि । से केणष्टेणं भंते ! जाव-चिट्ठति ? गोयमा ? ये जहाणामाए हरदे सिया, पुन्ने, पुण्णप्पमाणे, वोलट्टमाणे, वोसट्टमाणे समभरघडत्ताए चिट्टइ। अहे णं केई पुरिसे तंसि हरदंसि एगं महं नावं सयासवं, सयछिदं ओगाहेज्जा। से णूणं गोयमा ! सा णावा तेहि आसवदारेहिं आपूरमाणी, आपूरमाणी पुन्ना, पुन्नप्पमाणा, वोलट्ठमाणा, वोसट्टमाणा, समभरघडताए चिट्ठइ ? हंता, चिट्ठइ। से तेणटेणं गोयमा ? अत्थि णं जीवा य जाव-चिट्ठति। १९. आस्रव विषयक कुछ अन्य संदर्भ (गा० २३) : आस्रव के स्वरूप को हृदयङ्गम कराने के लिए स्वामीजी ने आगम के कुछ ऐसे संदर्भ गा० १२ से २२ में संकलित किये हैं जहाँ आस्रवद्वार का उल्लेख है। विषय को संक्षिप्त करने के लिए अन्य अनेक संदर्मों का उल्लेख उन्होंने वहाँ नहीं किया। उनकी अन्य गद्यात्मक कृति में अन्य स्थलों के संदर्भ भी हैं। हम यहाँ कुछ दे रहे हैं। १. स्थानाङ्ग (१.१३.१४) में “एगे आसवे' 'एगे संवरे' ऐसे पाठ हैं। टीका में विवेचन करते हुए लिखा है-"जिससे कर्म आत्मा में आस्रवित होते हैं-प्रवेश करते हैं उसे आस्रव कहते हैं। आस्रव अर्थात् कर्म-बन्ध का हेतु । जिस परिणाम से कर्मों के कारण
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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