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जीव पदार्थ
भाव-जीवों का
स्वभाव
३५. इन पाँचों ही भावों को भाव जीव जानो। इनको अच्छी तरह
पहचानो। जो उत्पन्न होते हैं और विलीन हो जाते हैं, वे भाव जीव है।
वे कैसे उत्पन्न होते हैं?
३६. ये भाव जीव कर्मों के संयोग-वियोग से उत्पन्न होते हैं।
चार भाव तो होकर निश्चय ही फिर जाते हैं। क्षायक भाव होकर नहीं फिरता।
३७. द्रव्य जीव शाश्वत है। वह तीनों काल में होता है। उसका
कभी विलय-नाश नहीं होता। वह द्रव्य रूप में सदा ज्यो-का-त्यों रहता है।
द्रव्य जीव का
स्वरूप (३७-४२)
३८. वह छेदन करने पर नहीं छिदता-(अच्छेद्य है), भेदन करने
पर नहीं भिदता-(अभेद्य है), और न जलाने पर-अग्नि में डालने पर-जलता ही है।
३६. वह काटने पर नहीं कटता, गलाने पर नहीं गलता, बांटने
नहीं बांटता और न घिसने पर घिसता है।
४०. जीव असंख्यात प्रदेशी द्रव्य है। वह सदा नित्य रहता है।
वह मारने पर नहीं मरता, और न थोड़ा भी घटता-बढ़ता है।
४१. जीव द्रव्य असंख्यात प्रदेशी है। उसके प्रदेश सदा
ज्यों-के-त्यों असंख्यात ही रहेंगे। तीनों ही काल में इसका एक प्रदेश भी न्यून नहीं हो सकता।
४२. खण्ड करने पर इसके खण्ड नहीं हो सकते, यह सदा एक
धार रहता है। यह द्रव्य जीव ऐसा ही अखण्ड पदार्थ है और अनादि काल से ऐसा चला आ रहा है |