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नव पदार्थ
४३. द्रव्य रा भाव अनेक 3 ताय, ते तो लखण गुण परजाय।
भाव लखण गुण परजाय, ए च्यारूं भाव जीव 0 ताय।।
४४. ए च्यारूं भला ने मूंडा होय, एक धारा न रहे कोय।
केइ खायक भाव रहसी एक धार, नीपना पछे न घटे लिगार।।
४५. दरबे जीव सासतो जाणो, तिण में संका मूल म आंणो।
भगोती सातमा सतक रे मांय, दूजे उदेसे कह्यो जिणराय।।
४६. भावे जीव असासतो जांणो, तिण में पिण संका मूल म आंणो।
ए पिण सातमां सतक रे मांय, दूजे उदेसे कह्यो जिणराय ।।
४७. जे ती जीव तणी परजाय, असासती कही जिणराय ।
तिण ने निश्चे भावे जीव जांणो, तिणनें रूडी रीत पिछाणो।।
४८. कर्मा रो करता जीव छै तायो, तिण सूं आश्रव नाम धरायो।
ते आश्रव छै भाव जीव, कर्म लागे ते पुदगल अजीव ।।
४६. कर्म रोके छै जीव ताह्यो, तिण गुण सूं संवर कहायो। . संवर गुण छै भाव जीव, रूकीया 0 कर्म पुदगल अजीव ।।
५०. कर्म तूटां जीव उजल थाय, तिणनें निरजरा कही जिणराय ।
ते निरजरा छै भाव जीव, तूटें ते कर्म पुदगल अजीव ।।