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जीव पदार्थ
२७. उदय तो आठ अजीव कर्मों का होता है। कर्मों के उदय पाँच भावों से जीव
के क्या होता हैं? से निष्पन्न जीव 'उदय-भाव' हैं, जिनके अनेक भिन्न-भिन्न
(२७-३१) नाम है।
२८.
उपशम एक माहनीय कर्म का होता है। इसके उपशम से अनेक गुण उत्पन्न होते हैं, जो 'उपशम-भाव जीव' हैं। इनके भी भिन्न-भिन्न नाम हैं।
२६. क्षय आठ ही कर्मों का होता है। कर्म-क्षय से परम क्षायक
गुण उत्पन्न होते हैं, जो 'क्षायक-भाव जीव' हैं । ये सदा उज्ज्वल रहते हैं।
३०. ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय इन
चार कर्मों का क्षयोपशम होता है, जिससे शुभ क्षयोपशम भाव उत्पन्न होता है। यह भी निर्दोष भाव जीव है।
३१. जीव जिन-जिन भावों में परिणमन करता है, वे सब
भिन्न-भिन्न हैं। परन्तु वे सभी पारिणामिक हैं। परिणाम के अनुसार अलग-अलग नाम हैं।
३२. कर्म के उदय-भाव होता है, जो भाव जीव है। कर्म के
उपशम से उपशम-भाव होता है। वह भी भाव जीव है।
पाँच भाव कैसे
होते हैं? (३२-३४)
३३. कर्म-क्षय से क्षायक भाव और कर्म-क्षयोपशम से क्षयोपशम
भाव होता हैं। ये दोनों भी भाव जीव है।
३४. उपर्युक्त (उदय, उपशम, क्षायक और क्षयोपशम) चारों
भाव पारिणामिक हैं; पारिणामिक भाव भी भाव जीव है। जीव या अजीव अनेक हैं, पर उनमें से एक भी पारिणामिक भाव रहित नहीं हैं।