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________________ पाप पदार्थ : टिप्पणी ६-७ ३२१ नाना प्रकार की क्रीड़ाओं में लगे रहना, व्रत और शील के पालन करने में रुचि न रखना आदि रतिवेदनीय के आस्रव हैं। दूसरों में अरति उत्पन्न हो और रति का विनाश हो ऐसी प्रवृत्ति करना और पापी लोगों की संगति करना आदि अरति वेदनीय के आस्रव हैं। स्वयं शोकातुर होना, दूसरों के शोक को बढ़ाना तथा ऐसे मनुष्य का अभिनन्दन करना आदि शोकवेदनीय के आस्रव हैं। भय रूप अपना परिणाम और दूसरे को भय पैदा करना आदि भयवेदनीय के आम्रव के कारण हैं। सुखकर क्रिया और सुखकर आचार से घृणा करना और अपवाद करने में रुचि रखना आदि जुगुप्सावेदनीय के आस्रव हैं | असत्य बोलने की आदत, अति संधानपरता, दूसरे के छिद्र ढूँढना और बढ़ा हुआ राग आदि स्त्रीवेद के आम्रव हैं | क्रोध का अल्प होना, ईर्ष्या नहीं करना, अपनी स्त्री में संतोष करना आदि पुरुषवेद के आस्रव हैं। प्रचुर मात्रा में कषाय करना, गुप्त इन्द्रियों का विनाश करना और परस्त्री से बलात्कार करना आदि नपुंसकवेदनीय के आस्रव हैं। मोहनीय कर्म के बंध-हेतुओं का नामोल्लेख भगवती में इस प्रकार मिलता है-(१) तीव्र क्रोध, (२) तीव्र मान, (३) तीव्र माया, (४) तीव्र लोभ, (५) तीव्र दर्शन-मोहनीय और १. सर्वार्थसिद्धि ६.१४ : विचित्रक्रीडनपरताव्रतशीलारुच्यादिः रतिवेदनीयस्य । २. वही ६.१४ : परारतिप्रादुर्भावनरतिविनाशनपाशीलसंसर्गादिः अरतिवेदनीयस्य । ३. वही ६.१४ : स्वशोकोत्पादनपरशोकप्लुताभिनन्दनादिः शोकवेदनीयस्य । ४. वही ६.१४ : स्वभयपरिणामपरभयोत्पादनादिर्भयवेदनीयस्य । ५. वही ६.१४ : कुशलक्रियाचारजुगुप्सापरिवादशीलत्वादिर्जुगुप्सावेदनीयस्य । ६. वही : ६.१४ अलीकाभिधायितातिसन्धानपरत्वपररन्ध्रप्रेक्षित्वप्रवृद्धरागादिः स्त्रीवेदनीयस्य। ७. वही ६.१४ : स्तोकक्रोधानुत्सुकत्वस्वदारसन्तोषादिः (वेदनीयस्य। ८. वही ६.१४ : प्रचुरकषायगुह्यन्द्रियव्यपरोपणपराङ्गनावस्कन्दनादिर्नपुंसकवेदनीयस्य। ज
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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