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________________ नव पदार्थ ३२२ (६) तीव्र चारित्र मोहनीय'। अन्य आगमों में मोहनीय कर्म के ३० बंध-हेतुओं का उल्लेख मिलता है। संक्षेप में वे इस प्रकार हैं : (१) त्रस प्राणियों को जल में डुबाकर जल के आक्रमण से उन्हें मारना। (२) किसी प्राणी के नाक, मुख आदि इन्द्रिय-द्वारों को हाथ से ढक अथवा अवरुद्ध कर मारना। (३) बहुत प्राणियों को किसी स्थान में अवरुद्ध कर चारों ओर अग्नि प्रज्वलित कर धुएँ से दम घोंटकर मारना। (४) दुष्ट चित्त से किसी प्राणी के उत्तमांग-सिर पर प्रहार करना है और मस्तक को फोड़कर विदीर्ण करना। (५) किसी प्राणी के मस्तक को गीले चर्म से आवेष्टित करना। (६) छलं पूर्वक बार-बार भाले या डंडे से किसी को पीटकर अपने कार्य पर प्रसन्न होना या हँसना। (७) अपने दोषों को छिपाना, माया को माया से आच्छादित करना, झूठ बोलना, सत्यार्थ का गोपन करना। (८) किसी निर्दोष व्यक्ति पर मिथ्या आरोप कर अपने दुष्ट-कार्यों को उसके सिर मँढ़कर उसे कलंकित करना। (६) जानते हुए भी किसी परिषद में अर्द्ध-सत्य (सच और झूठ मिश्रित) कहना। (१०) राजा का मंत्री होकर उसके प्रति जनता में विद्रोह कराना या विश्वासघात करना। (११) बाल-ब्रह्मचारी नहीं होने पर भी अपने को बाल-ब्रह्मचारी कहना तथा स्त्री-विषयक भोगों में लिप्त रहना। १. भगवती ८.६. • गोयमा ! तिव्वकोहयाए, तिव्वमाणयाए, तिव्वमाययाए, तिव्वलोभयाए, तिव्वदंसण मोहणिज्जयाए, तिव्वचरित्तमोहणिज्जयाए २. (क) समवायाङ्ग सम० ३० (ख) दशाश्रुतस्कंध द० ६० (ग) आवश्यक अ० ४
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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