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जीव पदार्थ
१७. जगत्
१८. जगत् : जीव में एक समय में लोकान्त तक जाने की __ स्वाभाविक शक्ति पायी जाती है। इस प्रकार अत्यन्त शीघ्र
गति से गमन करने वाला होने से जीव को 'जगत्' कहा
गया है। १६. जंतु : जीव जगह-जगह जन्मा है। चौरासी लाख योनियों
में वह उत्पन्न हुआ और वहाँ से निकला है। इसलिए इसका नाम जंतु है।
१८. जन्तु
१६. योनि
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२०. स्वयंभूत
२०. यानि : जीव अन्य वस्तुओं का उत्पादक है। अपने
बुद्धि-कौशल से वह घट, पट आदि अनेक वस्तुओं की
रचना करता है। इससे 'योनि' कहलाता है। २१. स्वयंभूत : जीव किसी का उत्पन्न किया हुआ नहीं है। इसी
से इसका नाम स्वयंभूत है। जीव स्वाभाविक द्रव्य है। वह
कभी विलय को प्राप्त नहीं होता। २२. सशरीरी : शरीर में रहने से जीव का नाम सशरीरी है।
काले, गोरे आदि की संज्ञा शरीर को लेकर ही है।
२१. सशरीर
२२. नायक
२३. अन्तरात्मा
२३. नायक : कर्मों का नायक होने से अपने सुख-दुःख
स्वयं उत्तरदायी होने से जीव का नाम नायक है। जीव का
न्याय का करने वाला है, विचार कर बात बोलने वाला है। २४. अन्तरात्मा : समस्त शरीर में व्याप्त रहने से जीव अन्तरात्मा
कहलाता है। जीव पुद्गलों में लोलीभूत-लिप्त है जिससे
उसका (असली) स्वरूप दब रहा है। २५. द्रव्य जीव शाश्वत और एक है। भगवान ने उसके भाव
अनेक कहे हैं। लक्षण, गुण और पर्याय कहलाते हैं। जीव के लक्षण, गुण और पर्याय भाव जीव है।
लक्षण, गुण, पर्याय
भाव जीव
२६. औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक और
पारिणामिक-इस तरह जिन भगवान ने पाँच भाव बतलाये हैं। इनके स्वभाव अलग-अलग कहे हैं।
पाँच भावों का
वर्णन (२७-३१)