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नव पदार्थ
१८. जए ति वा नाम तणो विचार, अति ही गमन तणो करणहार ।
एक समे लोकान्त लग जाय, एहवी सकत सभाविक पाय ।।
१६. जंतु ति वा जीव रो नाम, जन्म पाम्यो छै ठांम ठांम।
चोरासी लख जोनि रे मांहि, उपज्यो ने निसर गयो ताहि ।।
२०. जोणी ति वा जीव कहिवाय, पर नो उत्पादक इण न्याय।
घट पट आदि वस्त अनेक, उपजावे निज सुविवेक ।।
२१. सयंभू२० ति वा जीव रो नाम, किण हि निपजायो नहीं ताम।
ते तो छै द्रव्य जीव सभावे, ते तो कदे नहीं बिललावे ।।
२२. ससरीरी२१ ति वा नाम एह, सरीर रे अंतर तेह ।
सरीर पाछे नाम धरायो, कालो गोरादिक नाम कहायो ।।
२३. नायए२२ ति वा ते कर्मां रो नायक, निज सुख दुख रो दै दायक।
तथा न्याय तणो करणहार, ते तो बोले छै वचन विचार ।।
२४. अन्तरप्पा२३ ते जीव रो नाम, सर्व सरीर व्यापे रह्यो ताम।
लोलीभूत छै पुदगल मांहि, निज सरूप दबे रह्यो त्यांही।।
२५. द्रव्य तो जीव सासतो एक, तिणरा भाव कह्या छै अनेक।
भाव ते लखण गुण परज्याय, ते तो भावे जीव छै ताय ।।
२६. भाव तो पांच श्री जिण भाख्या, त्यांरा सभाव जूजूआ दाख्या।
उदें उपसम ने खायक पिछांणो, खय उपसम परिणांमिक जांणो।।