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जीव पदार्थ
१०.
११.
१२.
१४.
जेता : कर्म रूपी शत्रुओं को जीतने वाला होने से जीव का यह उत्तम जेता नाम है; जीव का पराक्रम - उसकी शक्ति (वीर्य) अनन्त है जिससे अल्प में ही वह कर्मों का अन्त ला सकता है।
आत्मा : यह नाम इसलिये है कि जीव ने जगह-जगह जन्म-मरण किया है। (नाना जन्मान्तर करते हुए) इसने सर्व लोक का स्पर्श किया है। किसी भी जगह इसे विश्राम नहीं मिला ।
१३. हिंडुक : कर्म रूपी झूलने में बैठकर जीव चारों गतियों में झूलता रहा है। कहीं भी विश्राम नहीं पाता। इससे जीव का नाम हिंडुक है।
पुदगल : पुद्गलों को (आत्म- प्रदेशों में) जगह-जगह एकत्रित कर रखने से जीव का नाम पुद्गल है। पुद्गल में लिप्त रहने से ही संसार की नींव लगी है ।
रंगण : जीव राग द्वेषी रूपी रंग में रगा रहता है और मोह में मतवाला रहकर आत्मा को कलंकित करता है, इससे इसका नाम रंगण है ।
१५.
मानव : जीव कोई नया नहीं परन्तु शाश्वत है इसलिये उसका नाम मानव है। जीव की पर्याय पलट जाती है। परन्तु द्रव्य से वह वैसे का वैसा रहता है।
१६. कर्त्ता : कर्मों का कर्त्ता-उपार्जन करने वाला होने से जीव का नाम कर्त्ता है। कर्मों का कर्त्ता होने से जीव को आस्रव कहा गया है। इस कर्तृत्त्व के कारण ही जीव के पुद्गल द्रव्य लगता रहता है।
१७. विकर्त्ता : कर्मों की विखेरता है इसलिये विकर्त्ता नाम है । यह कर्म बिखेरना ही निर्जरा की करनी है। जीव का (अंश रूप) उज्ज्वल होना निर्जरा है।
६. जेता
१०. आत्मा
११. रंगण
१२. हिंडुक
१३. पुद्गल
१४. मानव
१५. कर्त्ता
१६. विकर्त्ता