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जीव पदार्थ
२. (सर्व जीव असंख्यात प्रदेशों के अखण्ड समुदाय हैं।) इसी
में द्रव्यतः जीव एक कहा गया है। भाव जीव के अनेक भेद हैं। भगवान् ने जीव का बहुत विस्तृत वर्णन किया है। बुद्धिमान विचार कर द्रव्य जीव और भाव जीव को जान
लेते हैं। ३. भगवती सूत्र के बीसवें शतक के द्वितीय उद्देश्य में जिन
भगवान ने जीव के गुणानुरूप २३ नाम बतलाये हैं, जो निम्न प्रकार हैं। जीव : जीव का यह नाम आयु-बल होने तथा (तीन काल में सदा) जीवित रहने से हैं। यह संसारी जीव-भाव जीव है। बुद्धिमान विचार कर देखें।
जीव के तेइस
नाम:
१. जीव
२. जीवास्तिकाय
५. जीवास्तिकाय : जीव का यह नाम देह धारण करने से है।
प्रदेशों के समूह को काय कहते हैं। देह पुद्गल-प्रदेशों
का समूह है। उसे यह धारण करता है। ६. प्राण : जीव का नाम श्वासोश्वास लेने के कारण है।
भूत : इसे भूत इसलिये कहा गया है कि यह तीनों काल में विद्यमान रहता है।
३. प्राण
४. भूत
५. सत्त्व
सत्त्व : खुद ही शुभाशुभ का कारण है, इसलिये जीव सत्त्व है। विज्ञ : इन्द्रियों के शब्दादि विषयों का अनुभव करने वाला जानने वाला होने से विज्ञ है।
६. विज्ञ
७. वेद
८. वेद : सुख दुःख का वेदक-भोगने वाला होने से जीव
वेदक है। जीव ठौर-ठौर सुख-दुःख का अनुभव करता है। यह जीव चेतन है और सदा पुद्गल का स्वादी है।
८. चेता
६. चेता : जीव पुद्गलों की रचना (इनका चय करता है)।
पुद्गलों का चय कर वह विविध प्रकार के अच्छे-बुरे रूप धारण करता है। इससे जीव का. नाम चेता है।