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________________ पाप पदार्थ २६५ कर्मोदय आदि और भाव (गा०, २३-२५) २३-२५ जीव के जो औदयिक भाव उत्पन्न होते हैं उन्हें कर्म के उदय से जानो। जीव के जो औपशमिक भाव उत्पन्न होते हैं उन्हें कर्म के उपशम से जानो । जीव के जो क्षायिक भाव उत्पन्न होते हैं वे कर्म के क्षय से होते हैं तथा क्षयोपशम भाव कर्म के क्षयोपशम से। जीव के जो-जो भाव (औदयिक आदि) उत्पन्न होते हैं उन्हीं के अनुसार जीवों के नाम हैं। कर्मों के संयोग या वियोग से जैसे-जैसे नाम जीवों के पड़ते हैं वैसे-वैसे उन कर्मों के भी पड़ जाते हैं। २६. चारित्रमोहनीय कर्म की २५ प्रकृतियाँ हैं, जिनके भिन्न-भिन्न नाम हैं। जिस प्रकृति का उदय होता है उसीके अनुसार चारित्र मोहनीय कर्म जीव का नाम पड़ जाता है। ये कर्म और जीव के ___ की २५ प्रकृतियाँ (गा०,२६-३६) भिन्न-भिन्न परिणाम हैं। २७. जब जीव अत्यन्त उत्कृष्ट क्रोध करता है तो उसके परिणाम भी अत्यन्त दुष्ट होते हैं; ऐसे क्रोध को जिन क्रोध चौकड़ी भगवान ने अनन्तानुबन्धी क्रोध कहा है। ऐसे क्रोध वाले जीव का नाम कषाय आत्मा है। २८. जिन कर्मों के उदय से जीव उत्कृष्ट क्रोध करता है वे कर्म भी उत्कृष्ट रूप से उदय में आए हुए होते हैं। जो कर्म उदय में आते हैं वे जीव द्वारा ही संचित किए हुए होते हैं और उनका नाम अनन्तानुबन्धी क्रोध है। २६. अनन्तानुबन्धी क्रोध से कुछ कम उत्कृष्ट अप्रत्याख्यान क्रोध होता है और उससे कुछ कम उत्कृष्ट संज्वलन क्रोध होता है। जिन भगवान ने यह क्रोध की चौकड़ी बतलाई है। ३०. इसी प्रकार मान की चौकड़ी कहनी चाहिए। माया और लोभ की चौकड़ी भी इसी तरह समझो। इन चार चौकड़ियों के प्रसंग से कर्मों के नाम भी वैसे ही हैं तथा कर्मों के प्रसंग से जीव के नाम भी वैसे ही जानो। मान, माया और लोभ चौकड़ी
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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