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________________ आदि मङगल जीव पदार्थ दोहा जिन-शासन के अधिपति श्री वीर प्रभु' को नमस्कार करता हूँ तथा गणधर गौतम स्वामी को भी। इन तरण-तारण पुरुषों का प्रति दिन स्मरण करना चाहिए। इन पुरुषों ने भिन्न-भिन्न प्रकार से जीव आदि नव पदार्थों का स्वरुप-निरुपण किया है। हलुकर्मी जीव इन नव पदार्थों की पूरे मनोयोग पूर्वक ओलख (पहचान) करते नव पदार्थ और सम्यकत्व हैं। जीव-अंजीव की ओलख (पहचान) हुए बिना मन का भ्रम नहीं मिटता; समकित (सम्यकत्व) आए बिना जीव के नये कर्मों का संचार नहीं रुकता। जो प्राणी नव ही पदार्थों में से प्रत्येक में यथातथ्य श्रद्धा रखते हैं, वे निश्चय ही समदृष्टि जीव हैं और उन्होंने मुक्ति की नींव डाली दी। अब नव ही पदार्थ ही पहचान के लिये उनके भिन्न-भिन्न स्वरुप बतलाता हूँ| पहले जीव पदार्थ की पहचान कराता हूँ | सहर्ष सुनना। ढाल : १ द्रव्य जीव : भाव जीव जीव द्रव्य प्रत्यक्ष शाश्वत है। उसकी अनन्त संख्या कभी घटती नहीं। वह असंख्यात प्रदेशी है। इसके असंख्यात प्रदेशों में तिलमात्र-लेशमात्र भी घट-बढ़ नहीं होती।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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