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________________ पुण्य पदार्थ ( ढाल : २) टिप्पणियाँ १. पुण्य के हेतु और पुण्य का भोग (दो० १) : स्थानाङ्ग सूत्र में कहा है'-"पुण्य नौ प्रकार का है-अन्न पुण्य, पान पुण्य, वस्त्र पुण्य, लयन' पुण्य, शयन पुण्य, मन पुण्य, वचन पुण्य, काय पुण्य और नमस्कार पुण्य । यहाँ पुण्य का अर्थ है-पुण्य कर्म की उत्पत्ति के हेतु कार्य। अन्न, पान, वस्त्र, स्थान, शयन के निरवद्य दान से, सुप्रवृत मन, वचन, काया से तथा मुनि के नमस्कार से पुण्य प्रकृतियों का बंध होता है। अतः कार्य और कारण को एक मान पुण्य के कारणों को पुण्य की संज्ञा दी गयी है। स्थानाङ्ग के टीकाकार श्री अभयदेव ने अपनी टीका में नवविध पुण्य को बतलाने वाली निम्न गाथा उद्धृत की है : अन्नं पान च वस्त्रं च आलयः शयनासनम् । शुश्रूषा वंदनं तुष्टिः पुण्यं नवविधं स्मृतम् ।। इस गाथा में बताये हुए पुण्यों में छ: तो वे ही हैं जो मूल स्थानाङ्ग में उल्लिखित हैं किन्तु मन, वचन और काय के स्थान में यहाँ आसन पुण्य, शुश्रूषा पुण्य और तुष्टि पुण्य हैं। नवविध पुण्य की यह परम्परा अवश्य ही आगमिक नहीं है। १. ठाणाङ्ग ६. ३. ६७६ : णवविध पुन्ने पं० तं० अन्नपुन्ने, पाणपुण्णे, वत्थपुन्ने, लेणपुण्णे, सयणपुन्ने, मणपुन्ने, वतिपुण्णे, कायपुण्णे, नमोक्कारपुण्णे २. गृह, स्थान ३. शय्या-संस्तारक-बिछाने की वस्तु
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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