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पुण्य पदार्थ : (ढाल : २)
६२. जो पुण्य की कामना करता है वह कामभोगों की ही कामना करता है। कामभोग से संसार की वृद्धि होती है तथा प्राणी जन्म, मृत्यु और शोक को प्राप्त करता है।
६३.
६४.
कामना केवल एक मुक्ति की करनी चाहिए । अन्य कामना किञ्चित भी नहीं करनी चाहिए। जो पुण्य की वांछा करता है, वह मनुष्य-भव को हारता है" ।
पुण्य की उत्पत्ति कैसे होती है यह बताने के लिए सं० १८४३ की कार्त्तिक सुदी ४ गुरुवार को यह जोड़ कोठारया गांव में की है।
रचना-काल
१६६