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________________ १६२ नव पदार्थ ३६. पुन्य बंधे नव प्रकार सूं रे लाल, ते नवोई निरवद जांण हो। ते नवोई बोलां में जिण आगना रे लाल, तिणरी करज्यो पिछाण हो।। ४०. कोई कहै नवोई बोल समचे कह्या रे लाल, सावद्य निरवद न कह्या तांम हो। सचित अचित पिण नहीं कह्या रे लाल, पातर कुपातर रो पिण नहीं नाम हो।। ४१. तिणसूं सचित्त अचित्त दोनूं कह्या रे लाल, पातर कुपातर ने दीयां ताम हो। पुन नीपजे दीधां सकल ने रे लाल, ते झूठ बोले सुतर रो ले ले नाम हो।। ४२. साध श्रावक पातर ने दीयां रे लाल, तीर्थंकर नामादिक पुन थाय हो। अनेरां ने दान दीधां थकां रे लाल, अनेरी पुन प्रकत बंधाय हो।। ४३. इम कहै नाम लेई ठाणा अंग नों रे लाल, नवमा ठाणा में अर्थ दिखाय हो। ते अर्थ अणूहुंतो घालीयो रे लाल, ते भोलां ने खबर न काय हो।। ४४. जो अनेरा में दीयां पुन नीपजे रे लाल, जब टलीयो नहीं जीव एक हो। कुपातर ने दीयां पुन किहां थकी रे लाल, समझो आंण ववेक हो। ४५. पुन रा नव बोल तो समचे कह्या रे लाल, उण ठामें तो नहीं छै नीकाल हो। ज्यू वंदणा वीयावच पिण समचे कही रे लाल, ते गुणवंत सूं लेजो संभाल हो।। ४६. वंदणा कीधां खपावे नीच गोत ने रे लाल, उंच गोत कर्म बंधाय हो। तीर्थंकर गोत बंधे वीयावच कीयां रे लाल, ते पिण समचे कह्या छै ताय हो।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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