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________________ पुण्य पदार्थ : (ढाल : २) २३. महा आरम्भ, महा परिग्रह, पंचेन्द्रिय जीव की घात तथा मद्य-मांस के भक्षण से पाप-संचय कर जीव नरक में जाता नरकायु के बंध हेतु है। २४. माया-कपट से, गूढ़ माया से, झूठ बोलने से, झूठे तोल, झूठे माप से जीव तिर्यञ्च (योनि में उत्पन्न) होता है | तिर्यञ्चायु के बंध हेतु २५. प्रकृति के भद्र और विनयवान होने से, दया से और। अमात्सर्य भाव से जीव मनुष्य आयु का बंध करता है। भद्रता, विनय, दया और अकपट भाव ये निरवद्य कर्तव्य मनुष्यायुष्य के बंध हेतु २६. साधु के सराग चारित्र के पालन से, श्रावक के बारह व्रत रूप चारित्र के पालन से, बाल तपस्या और अकाम निर्जरा से सुर अवतार-देव-भव प्राप्त होता है। देवायुष्य के बंध हेतु शुभ-अशुभ नामकर्म के बंध हेतु २७-२८. कायिक सरलता से, भावों की सरलता से, भाषा की सरलता से तथा जैसी कथनी वैसी करनी से जीव शुभ नामकर्म का बंध करता है। इन्हीं चार बातों की विपरीतता से अशुभ नामकर्म का बंध होता है। कायिक कपटता आदि सावद्य कार्य हैं। ये पाप के हेतु हैं। इनसे निर्जरा नहीं होती। उच्च गोत्र और नीच गोत्र कर्म के . बंध हेतु २६-३०.जाति, कुल, बल, रूप, तप, लाभ, सूत्र (की जानकारी) और ठकुराई इन आठों मदों (अभिमानों) के न करने से जीव के उच्च गोत्र का बंध होता है ओर इन्हीं आठों मदों के करने से नीच गोत्र का बंध होता है। मद करना सावद्य-पाप क्रिया है। इसमें धर्म (निर्जरा) और पुण्य नहीं है ।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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