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________________ १८८ नव पदार्थ २३. माहा आरंभी ने माहा परिग्रही रे लाल, करे पचिंद्रि नी घात हो। . मद मांस तणो भखण करै रे लाल, तिण पाप सूं नरक में जात हो।। २४. माया कपट ने गूढ माया करे रे लाल, वले बोलै मूसावाय हो। कूड़ा तोल ने कूड़ा मापा करे रे लाल, तिण पाप सं तिरजंच थाय हो।। २५. प्रकत रो भद्रीक ने वनीत छै रे लाल, दया ने अमछर भाव जांण हो। तिण सूं बंधे आउषो मिनख रो रे लाल, ते करणी निरवद पिछांण हो।। २६. पाले सरागपणे साधुपणो रे लाल, वले श्रावक रा वरत बार हो। बाल तपसा नें अकांम निरजरा रे लाल, यां सूं पामें सुर अवतार हो।। २७. काया सरल भाव सरल सूं रे लाल, वले भाषा सरल पिछांण हो। जेहवो करे तेहवो मुख सूं कहै रे लाल, यांसूं बंधे सुभ नाम जांण हो।। २८. ए च्यारूं बोल बांका वरतीयां रे लाल, बंधे असुभ नाम करम हो। ते सावध करणी छै पाप रीरे लाल, तिणमें नहीं निरजरा धर्म हो।। २६. जात कुल बल रूप नो रे लाल, तप लाभ सुतर ठाकुराय हो। ए आठोई मद करे नहीं रे लाल, तिणसूं ऊंच गोत बंधाय हो।। ३०. ए आठोई मद करे तेहनें रे लाल, बंधे नीच गोत कर्म हो। ते सावध करणी पाप री रे लाल, तिणमें नहीं पुन धर्म हो।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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