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पंचेन्द्रिय आस्रव पृ० ४४६; ६. मैथुन आस्रव पृ० ४४६; ७. परिग्रह आस्रव पृ० ४५० ८. पृ० ४५२ - श्रोत्रेन्द्रिय आस्रव: चक्षुरिन्द्रिय आस्रव: घ्राणेन्द्रिय आस्रव, : रसनेन्द्रिय आस्रव, : स्पर्शनेन्द्रिय आस्रव; ६. मन योग, वचन योग और काय योग पृ० ४५४ - तीन योगों से भिन्न कार्मण योग है, वही पाँचवा आस्रव है, प्रवर्तन योग से निवर्तन योग अन्य है, शुभ योग संवर और चारित्र है आदि का खण्डन १०. भंडोपकरण आस्रव पृ० ४५६: ११. सूची- कुशाग्र आस्रव पृ० ४५६; १२. द्रव्य योग, भाव योग पृ० ४६०; १३. द्रव्य योग अष्टस्पर्शी है और कर्म चतुस्पर्शी पृ० ४६२; १४. आस्रवों के सावद्य - निरवद्य का प्रश्न पृ० ४६३; १५. स्वाभाविक आस्रव पृ० ४६४; १६. पाप स्थानक और आस्रव पृ० ४६४; १७. अध्यवसाय, परिणाम, लेश्या, योग और ध्यान पृ० ४६५: १८. पुण्य का आगमन सहज कैसे ? पृ० ४७१; १६. बासठ योग और सत्रह प्रकार के संयम पृ० ४७२ २०. चांर संज्ञाएँ पृ० ४७४; २१. उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकार - पराक्रम पृ० ४७५: २२. संयती, असयंती, संयतासंयती आदि त्रिक पृ० ४७६ - विरति अविरति और विरताविरति : प्रत्याख्यानी, अप्रत्याख्यानी और प्रत्याख्यानी अप्रत्याख्यानी: संयती, असयंती और संयतासंयती : पण्डित, बाल और बालपण्डित जाग्रत, सुप्त और सुप्तजानत: संवृत्त, असंवृत्त और संवृत्तासंवृत्त: धर्मी, अधमी और धर्माधर्मी : धर्म-स्थित, अधर्म-स्थित, और धर्मा-धर्मस्थित: धर्म - व्यवसायी, अधर्म व्यवसायी और धर्माधर्म-व्यवसायी; २३. किस-किस तत्त्व की घट-बढ़ होती है पृ० ४८. ४)
६. संवर पदार्थ
पृ० ४८७-५४८
संवर पदार्थ का स्वरूप (दो १-२ ) संवर की पहचान आवश्यक (दो० ३); संवर के मुख्य पाँच भेद (दो० ४ ): सम्यक्त्व संवर ( गा० १): विरति संवर ( गा० २); अप्रमाद संवर ( गा० ३); अकषाय संवर (गा० ४); अयोग संवर ( गा० ५-६); अप्रमाद, अकषाय और अयोग संवर प्रत्याख्यान से नहीं होते ( गा० ७); सम्यक्त्व संवर और सर्व विरति संवर प्रत्याख्यान से होते हैं (गा० ८- ६); हिंसा आदि १५ योगों के त्याग से विरति संवर होता है, अयोग संवर नहीं ( गा० १० - १३ ) : सवद्य - निरवद्य योगों के निरोध से अयोग संवर ( गा० १४-१५); कषाय आस्रव और योग आस्रव के प्रत्याख्यान का मर्म ( गा० १६ - १७); सामायिक आदि पाँच चारित्र सर्व विरति संवर है ( १८-४५); अयोग संवर (४६-५४); संवर भावजीव है ( गा० ५५) रचना-स्थान और संवत् ( गा० ५६) ।