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४१०; ३४. ध्यान जीव के परिणाम हैं पृ० ४११ ३५. आस्रव को अजीव मानना मिथ्यात्व है पृ० ४१२ ३६ आस्रव जीव कैसे ? पृ० ४१२ ३७. आस्रव और जीव के प्रदेशों की चंचलता पृ० ४१३; ३८. योग पारिणामिक और उदयभाव है अतः जीव है पृ० ४१६; ३६. निरवद्य योग का आस्रव क्यों माना जाता है ? पृ० ४२०, ४०. सर्व सांसारिक कार्य जीव परिणाम है पृ० ४२१; ४१. जीव आस्रव और कर्म पृ० ४२२ ४२. मोहकर्म के उदय से होने वाले सावद्य कार्य योगास्रव है पृ० ४२४ : ४३. दर्शन मोहनीयकर्म और मिथ्यात्व आस्रव पृ० ४२५ ४४. आस्रव रूपी नहीं अरूपी पृ० ४२५]
आस्रव पदार्थ ( ढाल : २)
पृ० ४२८-४८६
आस्रव कर्मद्वार है, कर्म नहीं (दो १-२ ): कर्म रूपी है, कर्मद्वार नहीं (दो० ३-४ ); बीस आस्रव जीव-पर्याय हैं (दो० ५); मिथ्यात्व आस्रव ( गा० १); अविरति आस्रव ( गा० २); प्रमाद आस्रव (गा० ३); कषाय आस्रव (गा० ४ ) : योग आस्रव ( गा० ५); प्राणातिपात आस्रव ( गा० ६): मृषावाद आस्रव (गा० ७); अदत्तादान आस्रव ( गा० ८ ): अब्रह्मचर्य आस्रव ( गा० ६); परिग्रह आस्रव ( गा० १०) पंचेन्द्रिय आस्रव ( गा० ११-१३) मन-वचन-काय प्रवृत्ति आस्रव (गा० १४-१५); भंडोपकरण आस्रव (गा० १६) सूची- कुशाग्र सेवन आस्रव (गा० १७); भावयोग आस्रव है, द्रव्य योग नहीं (गा० १८ ); कर्म चतुस्पर्शी हैं और योग अष्टस्पर्शी, अतः कर्म और योग एक नहीं ( गा० १६-२० ) : आस्रव एकान्त सावद्य ( गा० २१); योग आस्रव और योग व्यापार सावद्य - निरवद्य दोनों हैं ( गा० २२); बीस आस्रवों का वर्गीकरण (गा० २३-२५); कर्म और कर्त्ता एक नहीं ( गा० २६); आस्रव और १८ पाप स्थानक ( गा० २७-३६); आस्रव जीव-परिणाम हैं, कर्म पुद्गल परिणाम (गा० ३७): पुण्य-पाप कर्म के हेतु (गा. ३८-४६); असंयम के १७ भेद आस्रव हैं ( गा० ४७); सर्व सावद्य कार्य आस्रव है ( गा० ४८ ) ; संज्ञाएँ आस्रव हैं (गा० ४६); उत्थान, कर्म आदि आस्रव हैं (गा० ५०-५१) संयम, असंयम, संयमासंयम आदि तीन-तीन बोल क्रमशः संवर, आस्रव और संवरास्रव हैं ( गा० ५२-५५); आस्रव संवर से जीव के भावों की ही हानि - वृद्धि होती हैं ( गा० ५६-५८ ) : रचना-स्थान और समय ( गा० ५६) ।
टिप्पणियाँ
( १. आस्रव के विषय में विसंवाद पृ० ४४६: २. मिथ्यात्वादि आस्रवों की व्याख्या पृ० ४४६; ३. प्राणातिपात आस्रव पृ० ४४६, ४. मृषावाद आस्रव पृ० ४४८: ५. अदत्तादान आस्रव