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पुन पदारथ (ढाल : २)
दुहा
१. नव प्रकारे पुन नीपजे, ते करणी निरवद जांण ।
बयांलीस प्रकारे भोगवे, तिणरी बुधवंत करजो पिछांण ।।
२. पुन नीपजे तिण करणी मझे, तिहा निरजरा निश्चे जाण । तिण करणी री छै जिण आगना, तिण माहे संक म आंण ।।
३. केई साधू बाजे जैन रा, त्यां दीधी जिण मारग ने पूठ।
पुन कहे कुपातर ने दीयां, त्यांरी गई अभिंतर फूट ।।
४. काचो पाणी अणगल पावे तेहनें, कहै छै पुन ने धर्म ।
ते जिण मारग सूं वेगला, भूला अग्यांनी भर्म ।।
५. साध बिना अनेरा सर्व नें, सचित अचित दीयां कहे पुन। वले नांव लेवे ठाणा अंग रो, ते तो पाठ विना छै अर्थ सुन।।
६. किणही एक ठांणा अंग मझे, घाल्यों छै अर्थ विपरीत।
ते पिण सगला ठाणा अंग में नहीं, जोय करो तहतीक ।।
७. पुन नीपजे छै किण विधे, जोवो सूतर मांय ।
श्री वीर जिणेसर भाषीयो, ते सुणजो चित्त ल्याय ।।