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________________ पुण्य पदार्थ : (ढाल : १) टिप्पणी १७ W इसी सूत्र में अन्यत्र कहा है : शब्दादि विषयों से निवृत्त नहीं होनेवाले का आत्म-प्रयोजन नष्ट हो जाता है। कामभोगों से निवृत्त होनेवाले का आत्मार्थ नष्ट नहीं होता ।" अन्यत्र कहा है : "घर, मणि कुण्डलादि आभूषण, गाय, घोड़ादि पशु और दास-दासी इन सबका त्याग करनेवाला कामरूपी देव होता है ।" दिगम्बराचार्य भी ऐसा ही मानते हैं । इस विषय में आचार्य कुन्दकुन्द के कथन का सार इस प्रकार है : " निश्चय ही विविध पुण्य शुभ परिणाम से उत्पन्न होते हैं। ये देवों तक सर्व संसारी जीवों के विषयतृष्णा उत्पन्न करते हैं । पुनः उदीर्णतष्ण, तृष्णा से दुःखित और दुःखसंतप्त वे विषय सौख्यों की आमरण इच्छा करते हैं और उनको भोगते हैं। सुरों के भी स्वाभावसिद्ध सौख्य नहीं है। वे भी देह की वेदना से आर्त्त हुए रम्य विषयों में रमण-क्रीड़ा करते हैं। सुखों में अभिरत वज्रायुधधारी इन्द्र तथा चक्रवर्ती शुभ उपयोगात्मक भोगों से देहादि की वृद्धि करते हैं । पाप से प्रत्यक्ष दुःख होता है और पुण्य से प्राप्त भोगों में आसक्ति से दुःख होता है। ऐसी स्थिति में "जो 'पुण्य और पाप इनमें विशेषता नहीं, इस प्रकार नहीं मानता वह मोहसंछन्न घोर, अपार संसार में भ्रमण करता है । जो विदितार्थ पुरुष द्रव्यों में राग अथवा द्वेष को नहीं प्राप्त होता वह देहोद्भव दुःख को नष्ट करता है ।" १. २. ३. ४. उत्त० ७.२५-२६ : उत्त० ६.५ इह कामाणियद्वस्स अत्तट्ठे अवरज्झई । सोच्चा नेयाउयं मग्गं जं भुज्जो परिभस्संई ।। इह कामणियद्वस्स अत्तट्ठे नावरज्झई । पूइदेहनिरोहेणं भवे देवि त्ति में सुयं ।। गवासं मणिकुंडलं पसवो दासपोरुसं । सव्वमेयं चइत्ताणं कामरूवी भविस्ससि । । १७६ प्रवचनसार १.७४, ७५, ७१, ७३. वही १.७७-७८
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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