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________________ पुण्य पदार्थ : (ढाल : १) टिप्पणी १० ૧૬૭ संस्थान में हो उन्हें भी पुण्योत्पन्न मानना चाहिए। क्योंकि पुण्योदय के बिना वैसी अस्थियों और आकारों का होना सम्भव नहीं मालूम देता। स्वामीजी कहते हैं-"मैंने जो कहा है वह अपनी बुद्धि से विचार कर कहा है। अन्तिम प्रमाण तो केवलज्ञानी के वचनों को ही. मानना चाहिए।" १०. उच्च गोत्र कर्म (ढाल गा० ३०-३१) : जिस कर्म के उदय से उच्चकुल आदि की प्राप्ति होती है उसे 'उच्च गोत्र कर्म' कहा गया है। उच्च देव और उच्च मनुष्य उच्च गोत्र कर्मवाले होते हैं। ___ उच्च गोत्र कर्म से कई प्रकार की विशेषतायें प्राप्त होती हैं-जाति-विशिष्टता, कुल-विशिष्टता, बल-विशिष्टता, रूप-विशिष्टता, तपोविशिष्टता, श्रुत-विशिष्टता, लाभ-विशिष्टता और ऐश्वर्य-विशिष्टता। इस कर्म के उदय से मनुष्य को जाति, कुल, बल, रूप, तप, श्रुत, लाभ और ऐश्वर्य विषयक सम्मान व प्रतिष्ठा मिलती है। पुण्य पदार्थ ढाल १ के साथ चार शुभ कर्मों का विवेचन समाप्त होता है। ___ तत्त्वार्थसूत्र में साता वेदनीयकर्म, शुभ आयुष्यकर्म, शुभ नामकर्म, उच्च गोत्रकर्म के उपरांत सम्यक्त्व मोहनीय, हास्य, रति, पुरुष वेद इन प्रकृतियों को भी पुण्यरूप कहा गया है। "सद्वेद्यसम्यक्त्वहास्यरतिपुरुषवेदशुभायुर्नामगोत्राणि पुण्यम्" (८.२६) दिगम्बरीय परम्परा में इस सूत्र के स्थान में दो सूत्र हैं-“सद्वेद्यशुभायुर्नामगोत्राणि पुण्यम्" (२५) और "अतोऽन्यत् पापम् (२६) । इनसे स्पष्ट है कि यह परम्परा सम्यक्त्व मोहनीय, हास्य, रति और पुरुषवेद को पुण्य प्रकृति स्वीकार नहीं करती। इस विषय में प्रज्ञाचक्षु पण्डित सुखलालजी लिखते हैं : “श्वेताम्बरीय परम्परा के प्रस्तुत सूत्र में पुण्यरूप से निर्देशित सम्यक्त्व, हास्य, रति और पुरुषवेद ये चार प्रकृतियाँ दूसरे ग्रन्थों में वर्णित नहीं हैं। इन चार प्रकृतियों को पुण्य स्वरूप मानने वाला मत-विशेष बहुत प्राचीन हो ऐसा लगता है; कारण कि प्रस्तुत सूत्र में प्राप्त उसके उल्लेख के उपरान्त भाष्य वृत्तिकार ने भी मतभेद दर्शानेवाली कारिकाएँ दी हैं और लिखा है कि इस मंतव्य का रहस्य सम्प्रदाय का विच्छेद होने से हम नहीं जानते, चौदह पूर्वधर जानते होंगे।" १. तत्त्वार्थसूत्र (गु० तृ० आ०) सू० ८.२६ की पाद टिप्पणी पृ० ३४२।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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