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________________ ૧૬૬ नव पदार्थ (२८) जिस नामकर्म के उदय से जीव का वचन आदेय-लोगों में मान्य हो उसे 'शुभ आदेय नामकर्म' कहते हैं (गा० २१)। (२६) जिस नामकर्म के उदय से जीव को यश और कीर्ति की प्राप्ति होती है उसे 'शुभ यशकीर्ति नामकर्म' कहते हैं। (गा० २१)। (३०) जिस नामकर्म के उदय से सर्वजीवापेक्षा शरीर हल्का अथवा भारी नहीं होता उसे 'शुभ अगरुलघु नामकर्म' कहते हैं (गा० २२)। (३१) जिस नामकर्म के उदय से अपनी जीत और अन्य की हार होती है उसे 'शुभ पराघात नामकर्म' कहते हैं (गा० २२)। (३२) जिस नामकर्म के उदय से जीव सुखपूर्वक श्वासोच्छवास ले सकता है उसे 'शुभ श्वासोच्छ्वास नामकर्म' कहते हैं (गा० २३)। (३३) जिस नामकर्म के उदय से जीव स्वयं शीतल होते हुए भी उष्ण तापयुक्त होता. है उसे 'शुभ आतप नामकर्म' कहते हैं (गा० २३)। (३४) जीव नामकर्म से जीव शीतल प्रकाशयुक्त होता है उसे 'शुभ उद्योत नामकर्म' कहते हैं (गा० २४)। (३५) जिस नामकर्म से जीव को हंस आदि जैसी सुन्दर चाल-गति प्राप्त होती है उसे 'शुभ (विहायो) गति नामकर्म' कहते हैं (गा० २४)। (३६) जिस नामकर्म से जीव का शरीर फोड़े-फुन्सियों से रहित होता है उसे _ 'शुभ निर्माण नामकर्म' कहते हैं; अथवा जिस कर्म से जीव के जीव के अवयव यथास्थान व्यवस्थित होते हैं वह 'शुभ निर्माण नामकर्म' है। (गा० २५)।। (३७) जिस नामकर्म के उदय से तीर्थंकरत्व प्राप्त होता है उसे 'शुभ तीर्थङ्कर नामकर्म' कहते हैं (गा० २५)। ९. स्वामीजी का विशेष मन्तव्य (ढाल गा० २६-२९) : स्वामीजी के मत से कुछ तिर्यञ्चों की गति और आनुपूर्वी शुभ है और इसलिए पुण्य की प्रकृति मानी जानी चाहिए। उदाहरणस्वरूप युगलिया आदि तिर्यञ्चों की। इसी तरह प्रथम संहनन और प्रथम संस्थान के सदृश अस्थियाँ और आकार विशेष जिस संहनन और १. 'शुभ त्रस नामकर्म' से लेकर 'शुभ यशकीर्ति नामकर्म' तक (२०-२६) त्रसदशक कहलाता है। २. श्री नवतत्त्वप्रकरणम् ६। १६ की वृत्ति : यदुदयाद्रविबिम्बे तापवच्छरीरं भवति तत्सूर्यबिम्बस्यातपनामकर्म। ३. वही : यदुदयात् स्वस्वस्थानेषु चक्षुराद्योपांगानां निष्पत्तिस्तन्निर्माणनामकम्म
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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