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२१६; १३. साता-असाता वेदनीयकर्म के बंध- हेतु पृ० २२०; १४. कर्कश-अकर्कश वेदनीय कर्म के बंध हेतु पृ० २२२; १५. अकल्याणकारी-कल्याणकारी कर्मों के बंध - हेतु पृ० २२२; १६. साता-असातावेदनीय कर्म के बंध हेतु विषयक अन्य पाठ पृ० २२४; १७. नकायुष्य के बंध हेतु पृ० २२४; १८. तिर्यञ्चायुष्य के बंध हेतु २२५ १६ मनुष्यायुष्य के बन्ध-हेतु पृ० २२५: २०. देवायुष्य के बंध हेतु पृ० २२६ : २१. शुभ-अशुभ नाम कर्म के बंध हेतु पृ० २२७; २२. उच्च-नीच गोत्र के बंध हेतु पृ० २२८ : २३. ज्ञानावरणीय आदि चार पाप कर्मों के बन्ध- हेतु पृ० २२६, २४. वेदनीय आदि पुण्य कर्मों की निरवद्य करनी पृ० २३०; २५. 'भगवती सूत्र' में पुण्य-पाप की करनी का उल्लेख पृ० २३१ २६. कल्याणकारी कर्मबंध के दस बोल पृ० २३१ २७. पुण्य के नव बोल पृ० २३२ : २८. क्या नवों बोल अपेक्षा-रहित हैं ? पृ० २३२; २६. पुण्य के नौ बोलों की समझ और अपेक्षा पृ० २३३: ३०. सावद्य-निरवद्य कार्य का आधार पृ० २३६; उपसंहार पृ० २४७ - २५४)
४. पाप पदार्थ
पृ० २५५-३४४
पाप पदार्थ का स्वरूप (दो० १); पाप की परिभाषा (दो० २); पाप और पाप - फल स्वयंकृत हैं (दो० ३); जैसी करनी वैसी भरनी (दो० ४): पापकर्म और पाप की करनी भिन्न-भिन्न हैं (दो० ५); घनघाती कर्म और उनका सामान्य स्वभाव (गा० १): घनघाती कर्मों के नाम (गा० २); प्रत्येक का स्वभाव ( गा० ३); गुण-निष्पन्न नाम (गा० ४-५); ज्ञानावरणीय कर्म की पाँच प्रकृतियों का स्वभाव ( गा० ६-७); इसके क्षयोपशम आदि से निष्पन्न भाव (गा० ८); दर्शनावरणीय कर्म की नौ प्रकृतियाँ ( गा० ६-१५); इसके क्षयोपशम आदि से निष्पन्न भाव (गा० १५); मोहनीयकर्म का स्वभाव और उसके भेद ( गा० १६ - १७); दर्शन मोहनीयकर्म के उदय आदि से निष्पन्न भाव ( १८-२० ): चारित्र मोहनीयकर्म और उसके उदय आदि से निष्पन्न भाव (गा० २१-२२ ): कर्मोदय और भाव (गा० २३-२५); चारित्र मोहनीयकर्म की २५ प्रकृतियाँ ( गा० २६-३२); अन्तराय कर्म और उसकी प्रकृतियाँ (गा० ३७-४२); चार अघाति कर्म (गा० ४३); असातावेदनीय कर्म (गा० ४४ ): अशुभ आयुष्य कर्म (गा० ४५-४६); संहनन नामकर्म, संस्थान नामकर्म ( गा० ४७): वर्ण- गन्ध-स्पर्श नामकर्म ( गा० ४८ ) : शरीर अङ्गोपाङ्ग बन्धन, संघातन नामकर्म ( गा० ४६); स्थावर नामकर्म ( गा० ५०); सूक्ष्म नामकर्म ( गा० ५१); साधारण शरीर नामकर्म, अपर्याप्त नामकर्म ( गा० ५२); अस्थिर नामकर्म, अशुभ नामकर्म (गा० ५३); दुर्भग नामकर्म, दुःस्वर नामकर्म