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। (गा० ५४); अनादेय नामकर्म, अपयशकीर्ति नामकर्म (गा० ५५); अपघात नामकर्म,
अप्रशस्त विहायोगति नामकर्म (गा० ५६); नीच गोत्र कर्म (गा० ५७); रचना-स्थान और काल (गा० ५८)।
टिप्पणियाँ (१. पाप पदार्थ का स्वरूप पृ० २७४; २. पाप-कर्म और पाप की करनी पृ० २६१; ३. घाति और अघाति कर्म पृ० २६८; ४. ज्ञानावरणीय कर्म पृ० ३०४; ५. दर्शनावरणीय कर्म पृ० ३०७; ६-७. मोहनीयकर्म पृ० ३११; ८. अन्तरायकर्म पृ० ३२४; ६. असातावेदनीय कर्म पृ० ३२७; १०. अशुभ आयुष्य कर्म पृ० ३२६; ११. अशुभ नामकर्म पृ० ३३१; १२. नीचगोत्र कर्म पृ० ३४१) ५. आस्रव पदार्थ (ढाल : १)
पृ० ३४५-४२७ ___ आस्रव की परिभाषा : आस्रव और कर्म भिन्न हैं (दो० १); पाप और पुण्य के आस्रव : अच्छे-बुरे परिणाम (दो० २); आस्रव जीव है (दो ३-४); आस्रव द्वार पाँच हैं (गा० १); आस्रव-द्वारों के नाम (गा० २); मिथ्यात्व आस्रव (गा० ३); अविरति आस्रव (गा० ४-५); प्रमाद आस्रव (गा० ६); कषाय आस्रव (गा० ७); योग आस्रव (गा० ८); आस्रव-द्वारों का सामान्य स्वभाव (गा० ६); आस्रव का प्रतिपक्षी संवर (गा० १०); पाँच-पाँच आस्रव-संवरद्वार (गा० ११); आस्रव-द्वार का वर्णन कहाँ-कहाँ है (१२-२३): आस्रव जीव कैसे है ? (गा० २४); आस्रव जीव के परिणाम हैं (गा० २५); जीव ही पुद्गलों को लगाता है (गा० २६); ग्रहण किए हुए पुद्गल ही पुण्य-पापरूप हैं (गा० २७); जीव कर्ता है (गा० २८-२६); जीव अपने परिणामों से कर्ता हैं (गा० ३०); कर्ता, करनी, हेतु उपाय चारों कर्ता हैं (गा० ३१); योग जीव हैं (३२-३४); लेश्या जीव का परिणाम है (गा० ३५-३६); मिथ्यात्वादि जीव के उदयभाव हैं (गा० ३७); योग आदि पाँचों आस्रव जीव हैं (गा० ३८-४८); आस्रव जीव के परिणाम हैं (गा० ३६-४०); मिथ्यात्व आस्रव जीव है (गा० ४१); आस्रव अशुभ लेश्या के परिणाम हैं (गा० ४२); जीव के लक्षण अजीव नहीं होते (गा० ४३); संज्ञाएँ जीव हैं (गा० ४४); अध्यवसाय आस्रव है (गा० ४५); आर्त रौद्र ध्यान आस्रव हैं (गा० ४६); कर्मों के कर्ता जीव हैं (गा० ४७-४८); आस्रव-निरोध से क्या रुकता या स्थिर होता है ? (गा० ४६); मिथ्या श्रद्धान आदि आस्रव जीव के होते हैं अतः जीव हैं (५०-५३); आस्रव का विरोधः संवर की उत्पत्ति (गा० ५४); सर्व प्रदेश कर्मों के कर्ता हैं (गा० ५५); संवर और आस्रव में अन्तर