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________________ पुण्य पदार्थ (ढाल : १) १४१ २४. स्थिर अवयव २५. सुन्दर अवयव १६. 'स्थिर शुभ नाम कर्म' के उदय से शरीर के अवयव दृढ होते हैं, 'शुभ नाम कर्म' से नाभि से मस्तक तक के अवयव सुन्दर होते हैं। २६. लोक-प्रियता २७. सुस्वरता २०. “सौभाग्य शुभ नाम कर्म' से जीव सर्व लोक-प्रिय होता है; "सुस्वर शुभ नाम कर्म' से जीव का कंठ सुस्वर और मधुर होता है। २१. 'आदेय वचन शुभ नाम कर्म' से जीव के वचन सबको मान्य होते है; 'यशी कीर्ति नाम कर्म' के उदय से जगत में यश-कीर्ति प्राप्त होती है। २८. आदेय वचन २६. यश कीर्ति २२. अग ३०. अगुरुलघु ३१. पराघात "अगरुलघु शुभ नाम कर्म से शरीर में हल्का या भारी नहीं मालूम देता है; 'पराघात शुभ नाम कर्म' के उदय से जीव स्वयं विजयी होता है और दूसरा हारता है। 'श्वासोच्छ्वास शुभ नाम कर्म' के उदय से प्राणी सुखपूर्वक श्वायोच्छ्वास लेता है; 'आतप शुभ नाम कर्म' उदय से जीव स्वंय शीतल होते हुए भी दूसरा (सामने वाला) आतप (तेज) का अनुभव करता है। ३२. उच्छवास ३३. आतप ३४. उद्योत ३५. शुभ गति २४. 'उद्योत शुभ नाम कर्म' से शरीर शीत प्रकाशयुक्त होता है; 'शुभ गति नाम कर्म' से हंसादि जैसी सुन्दर चाल प्राप्त होती है। 'निर्माण शुभ नाम कर्म' से शरीर फोड़े फुन्सियों से रहित होता है; 'तीर्थंकर नाम कर्म के उदय से मनुष्य तीन लोक प्रसिद्ध तीर्थंकर होता है। ३६. निर्माण ३७. तीर्थकर-गीत्र २६. कई युगलिया आदि और तिर्यंञ्चों की गति और आनुपूर्वी पुण्य की प्रकृति मालूम देती है फिर जो ज्ञानी कहे वह प्रमाण है।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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