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________________ पुण्य पदार्थ (ढाल : १) १३६ १०. पाँच शरीर १३. तीन उपाङ्ग १०. शुद्ध निर्मल पाँच शरीर और इन शरीरों के तीन निर्मल उपाङ्ग-ये सब शुभ नाम कर्म के उदय से प्राप्त होते हैं। सुन्दर शरीर और उपाङ्ग इसीसे होते हैं। ११. पहिले संहनन के हाड़ अच्छे (मजबूत) और पहले संस्थान का आकार सुन्दर होता है। शुभ नाम कर्म के उदय से ये प्राप्त होते हैं। १४. प्रथम संहनन १५. प्रथम स्थान १६. शुभ वर्ण १२. अच्छे-अच्छे प्रिय वर्ण, जिनका जीव अनेक प्रकार से भोग करता है, शुभ नाम कर्म के उदय से ही प्राप्त होते हैं। १७. शुभ वर्ण १३. अच्छी-अच्छी प्रिय गंध, जिनका जीव अनेक प्रकार से भोग करता है, शुभ नाम कर्म के उदय से ही प्राप्त होते हैं। १८. शुभ रस १४. अच्छे-अच्छे प्रिय रस, जिनका जीव अनेक प्रकार से भोग करता है, शुभ नाम कर्म के उदय से ही प्राप्त होते हैं। १६. शुभ स्पर्श १५. अच्छे-अच्छे प्रिय स्पर्श, जिनका जीव अनेक प्रकार से भोग करता है, शुभ नाम कर्म के उदय से ही प्राप्त होते हैं। त्रय दशक: १६. त्रस-दशक पुण्योदय से-शुभ नाम कर्म के उदय से प्राप्त होते हैं। मैं इनका अलग-अलग वर्णन करता हूँ, सुज्ञ और चतुर लोग तत्त्व का निर्णय करें। २०. बसावस्था २१. बादरत्व १७. 'वस शुभ नाम कर्म' के उदय से चेतन जीव वसावस्था को पाता है, 'बादर शुभ नाम कर्म' के उदय से जीव बादर होता है। १८. 'प्रत्येक शुभ नाम कर्म' के उदय से जीव प्रत्येकशरीरी होता है; 'पर्याप्त शुभ नाम कर्म' से जीव पर्याप्त होता है। २२. प्रत्येक शरीरी २३. पर्याप्त
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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