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________________ अजीव पदार्थ : टिप्पणी ३२ १२५ हैं और उसको अभी सारी प्रयोग सम्बन्धी क्रियाओं के लिए इकाई मानते हैं। जैन दृष्टि से अणु को ही नहीं इलैक्ट्रोन आदि को भी व्यावहारिक अणु कहा जायेगा। अनुयोगद्वार' में कहा है-परमाणु दो तरह के हैं : सूक्ष्म और व्यावहारिक । सूक्ष्म परमाणुः अछेद्य, अभेद्य, अग्राह्य और निर्विभाज्य हैं व्यावहारिक परमाणु अनन्त सूक्ष्म परमाणु पुद्गलों की समुदाय समितियों के समागम से उत्पन्न होता है। विज्ञान कहता है कि विश्व का वजन या परिमाण (weight of mass) हमेशा समान रहता है। जैन तत्त्वज्ञान कहता है कि विश्व के जितने मूलभूत द्रव्य हैं उनकी संख्या में कमी नहीं होती-वे नाश को प्राप्त नहीं हो सकते । मूलभूत द्रव्यों का नाश नहीं होता। इससे भी यही सार निकलता है कि द्रव्यों का वजन नहीं घटता; वह उतना का उतना ही रहता है। जैनधर्म का यह सिद्धान्त जड़-पदार्थ के लिए ही लागू नहीं परन्तु जीव-पदार्थ और अरूपी अचेतन पदार्थों के लिए भी है इसलिए यह आधुनिक विज्ञान के सिद्धान्त से अधिक व्यापक है। जितनी भी पौद्गलिक चीजें बनती हुई मालूम देती हैं वे सब पुद्गल-द्रव्य की पर्याय-परिवर्तन मात्र हैं और चीजों का नाश होता हुआ नजर आता है वह भी इन पर्याय-पुद्गल-द्रव्यों के परिवर्तित रूप का ही। मूल पुद्गल-द्रव्य की न तो उत्पत्ति होती है और न विनाश । वह ज्यों-का-त्यों रहता है। जैन मान्यता के अनुसार परिणाम द्रव्य और गुण दोनों में होता है। और यह परिणाम पदार्थ के स्वभव को लिए हुए होता हैं कहने का तात्पर्य यह है कि जड़-पदार्थ का परिवर्तन सदा जड़ रूप ही होगा; वह चेतन रूप नहीं होगा और इस तरह पुद्गल-जड़ स्वभाव को कायम रखते हुए द्रव्य और गुण पर्यायों में परिवर्तन करेगा। 4. But atoms are the units which retain their identity when chemical reactions take place; therefore, they are important to us now. Atoms are the structural units of all solids, liquids and gases. (General Chemistry by Linus Pauling p. 20) २. अनुयोग द्वार प्रमाण द्वार : परमाणू दुविहे पन्नते तंजहा सुहुमेय ववहारियेय। . . . . . तत्थ णं जे से ववहारिए से णं अणंताणं सुहुमपरमाणुपोग्गलाणं समुदयसमितिसयमागमेणं ववहारिए परमाणुपोग्गले निप्फज्जंति। ३. तत्त्वार्थसूत्र ५.४१ : तद्भाव : परिणाम :
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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