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________________ १२६ "सारांश यह है कि द्रव्य हो अथवा गुण, हरेक अपनी-अपनी जाति का त्याग किए बिना ही प्रतिसमय निमितानुसार भिन्न-भिन्न अवस्थाओं को प्राप्त किया करते हैं। यही द्रव्यों का तथा गुणों का परिणम कहलाता है । . . . द्वयणुक अवस्था हो या त्रयणुक आदि अवस्था हो, परन्तु [ इन अनेक अवस्थाओं में भी पुद्गल अपने पुद्गलत्व को नहीं छोड़ता । इसी प्रकार ] धोलाश छोड़ कर कालाश धारण करे, कालाश छोड़ कर पीलाश धारण करे, तो भी उन सब विविध पर्यायों मे रूपत्व स्वभाव कायम रहता है'।" आधुनिक उदाहरण के लिए अमोनिया गैस को ले लीजिए। यह नाइट्रोजन और हाइड्रोजन गैस का बना होता है । अमोनिया हाइड्रोजन और नाईट्रोजन गैसों की तरह ही जड़-पदार्थ होता है इसलिए इसमे मूलतत्त्वों को जड़ स्वभाव की रक्षा हे । अमोनिया की कड़वी गंध और तिग्म (Caustic) स्वाद घटक पदार्थों के गंध और स्वाद गुण के रूपान्तर हैं और अमोनिया 'हाइड्रोजन और नाइट्रोजन गैसों का रूपान्तर । इस तरह पुद्गल द्रव्य स्वभाव की रक्षा करते हुए द्रव्य और गुण रूप से पर्याय करते हैं। इस सम्बन्ध में जैन तत्त्व विज्ञान आधुनिक विज्ञान से अधिक स्पष्ट और बोधक है। नव पदार्थ ३३. (गा० ३३) : पर्याय की दृष्टि से पुद्गल द्रव्य नित्य नहीं है क्योंकि अवस्थान्तर - परिवर्तन-प्रति समय होता रहता है परन्तु द्रव्य की दृष्टि से पुद्गल नित्य है। उसका कभी विनाश नहीं होता। इस तरह पुद्गल द्रव्य का शाश्वत और अशाश्वत भेद - द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक दृष्टि से है। उत्तराध्ययन में कहा है: "स्कंध और परमाणु सन्तति की अपेक्षा से अनादि अनन्त है और स्थिति की अपेक्षा से सादि सान्त है।" स्वामीजी के कथन का आधार यही आगम वाह्य है। १. तत्त्वार्थसूत्र (गु० तृ० आ०) पृ० २४६ २. उत्त० ३६.१३ संतई पप्प तेऽणाई, अपज्जवसिया वि य । ठिइं पडुच्च साईया, सपज्जवसिया वि य । ।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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