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________________ नव पदार्थ “वर्ण से परिणत पुद्गल काले, नीले, काले, पीले और शुक्ल पाँच प्रकार के होते “गंध से परिणत पुद्गल सुगन्ध-परिणत और दुर्गन्ध-परिणत दो तरह के होते हैं।' “रस से परिणत पुद्गल तिक्त, कटु, कषाय, खट्टे और मधुर पाँच प्रकार के होते “स्पर्श से परिणत पुदगल कर्कश, कोमल, भारी, हल्का, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष आठ प्रकार के होते हैं।" “संस्थान से परिणत पुद्गल परिमण्डल, वृत्त, त्रिकोण, चतुष्कोण और लम्बे-पाँच प्रकार के होते हैं। ८. एकत्व : परमाणु का एक या अधिक परमाणु अथवा स्कंध के साथ मिलना एकत्व है। ६. पृथक्त्व : स्कंध से परमाणु का जुदा होना पृथक्त्व है। १०. संख्या : एक परमाणु रूप होना अथवा दो परमाणु से आरंभ कर अनन्त परमाणुओं का स्कंध होना । अथवा द्रव्यों के प्रदेशों की संख्या के परिमणन का हेतु होना। ११. संस्थान : भगवती सूत्र में संस्थान (आकृति) पाँच प्रकार के कहे हैं। (१) परिमंडल, (२) वृत्त, (३) त्रयस्र (त्रिकोण), (४) चतुरस्र (चतुष्कोण) और (५) आयत (लंबा)। संस्थानों की संख्या छ: भी मिलती है। इसका छठाँ प्रकार अनित्यंस्थ है। संस्थान के सात भेद भी कहे गये हैं : (१) दीर्घ, (२) हृस्व, (३) वृत्त, (४) त्र्यंश, (५) चतुरस्र, (६) पृथुल और (७) परिमंडल। १२. संयोग-बंध । यह प्रायोगिक और वैश्रसिक दो प्रकार का होता है। जीव और शरीर का सम्बन्ध अथवा टेबिल के अवयवों का सम्बन्ध प्रयत्न साध्य होने से प्रयोगज है। बादलों का संयोग स्वाभविक वैश्रसिक है। . १३. विभाग-भेद । मुख्य भेद पाँच है।। (१) उत्करिक : चीरने या फाड़ने से लकड़ी, पत्थर आदि के जो भेद होते हैं; (२) चूर्णिक-पीसने से आटा आदि रूप जो भेद होते हैं; (३) खण्ड-सुवर्ण के टुकड़ें के रूप के भेद; (४) प्रतर-अबरख की चादरों के रूप के १. उत्त० ३६. १५-२१ २. भगवती २५.३ ३. भगवती २५.३ ४. ठाणाङ्ग ७.३.५४८ ५. पण्णवणा ११.२८
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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