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अजीव पदार्थ : टिप्पणी ३१
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शब्द श्रोत्रेन्द्रिय का विषय है। शब्द या तो शुभ होते हैं या अशुभ । इसी तरह वे (१) आत्त-अनात्त, (२) इष्ट-अनिष्ट, (३) कान्त-अकान्त, (४) प्रिय-अप्रिय, (५) मनोज्ञ-अमनोज्ञ और (६) मनआम-अमनआम होते हैं।
शब्द कानों के साथ स्पृष्ट होने पर सुनाई पड़ता है |
भगवान महावीर ने बतलाया है कि शब्द आत्मा नहीं है। वह अनात्म है। वह रूपी है। वह भाषा वर्गणा के पुद्गलों के एक प्रकार का विशिष्ट परिणाम है।
भाषा का आकार वज्र की तरह होता है। लोकान्त में उसका अन्त होता है। भाषा दो समयों में बोली जाती है।
२. अंधकार- तम, तिमिर । जो अंधा कर देता है जिसके कारण वस्तुओं का रूप दिखलाई नहीं देता, उसे अंधकार कहते हैं। आतप सूर्य या दीपक के प्रकाश से जो पुद्गल तेजस् परिणाम को प्राप्त करते हैं वे ही श्याम भाव में परिणमन करते हैं। यह अंधकार पुद्गल परिणामी है। यह प्रकाश का विरोधी है।
३. उद्योत : तारक, ग्रह, चन्द्रादि के शीतल प्रकाश के उद्योत कहते हैं। चन्द्रमादि से प्रति समय निकलता हुआ उद्योत पुद्गल प्रवाहात्मक होता है।
४. प्रभा : प्रदीप आदि का प्रकाश । सूर्य चन्द्रमा तथ इसी प्रकार के अन्य तेजस्वी पुद्गलों से निर्झरण करती हुई प्रभा पुद्गलसमूहात्मिका है।
५. छाया : यह प्रकाश पर आवरण पड़ने से उत्पन्न होती है। छाया दो तरह की होती है-(१) प्रतिबिम्ब और (२) परछाईं । दर्पण या जल पर पड़ी हुई छाया को प्रतिबिम्ब तथा धूप या प्रकाश में पड़ी हुई आकृति या वस्तु की विपरीत दिशा में पड़ती हुई छाया परछाईं कहलाती है।
६. आतप : सूर्यादि का उष्ण प्रकाश।
७. वर्ण, गंध, रस, स्पर्श और संस्थान : उत्तराध्ययन सूत्र में कहा है : “स्कंध और परमाणु के परिणाम वर्ण, गंध रस, स्पर्श और संस्थान से पाँच प्रकार के हैं :
१. ठाणाङ्ग २.३.८२ २. भगवती ५.४
पुट्ठाई सुणोइ, नो अपुट्ठोइं सुणेइ ३. भगवती १३.७ ४. पणवण्णा ११.१५
वज्जसंठिया, लोगंतपज्जवसिया पणणत्ता. . . दोहि य समएहिं भासती भासं।