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________________ ११० नव पदार्थ शरीर बिना नहीं होता। स्वामीजी कहते हैं-ये सभी शरीर पौद्गलिक हैं-पुद्गलों से रचित हैं'। पुदगलों की पर्यायें होने से ये नित्य नहीं है। ये अस्थायी और विनाशशील हैं। ३ : छाया, धूप, प्रभा-कांति, अंधकार, उद्योत आदि । उत्तराध्ययन में कहा है : “शब्द, अंधकार, उद्योत, प्रभा, धूप तथा वर्ण, गंध रस और स्पर्श पुद्गल के लक्षण हैं। एकत्व, पृथक्त्व, संख्या, संस्थान, संयोग और विभाग पर्यायों के लक्षण हैं। वाचक उमास्वाति के प्रायः इसी आशय के सूत्र इस प्रकार है : स्पर्शरसगंधवर्णवन्तः पुद्गलाः । शब्दबन्धसौम्यस्थौल्यसंस्थानभेदतमश्छायाऽऽतपोद्योतवन्तश्च । स्वामीजी का कथन (गा० ५६-५७) भी ठीक ऐसा ही है और उसका आधार उत्तराध्ययन की उपर्युक्त गाथाएँ हैं। स्वामीजी ने छाया, धूप आदि सबको भाव-पुद्गल कहा है। ये पुद्गल भिन्न-भिन्न रूप हैं। उसकी पर्याय-अवस्थाएँ हैं। इस बात से दिगम्बराचार्य भी सहमत है। ४. उत्तराध्ययन के क्रम से शब्दादि पुद्गल परिणामों का स्वरूप अब हम उत्तराध्ययन सूत्र के क्रम से शब्दादि भाव-पुद्गलों पर क्रमशः प्रकाश डालेंगे। १. मिलावें प्रवचन सार २.७६ : ओरालिये य देहो वेउव्विओ य तेजइओ। आहारय कम्मइओ पुग्गलदव्वप्पगा सव्वे ।। २. उत्त० २८.१२.१३ ३. तत्त्वार्थसूत्र ५.२३ ४. तत्त्वार्थसूत्र ५.२४ ५. द्रव्यसंग्रह : १६ सद्दो बंधो सुहमो थूलो संठाण भेदतमछाया। उज्जोदादपसहिया पुग्गलदव्वस्स पज्जाया।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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