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________________ अजीव पदार्थ : टिप्पणी ३१ १०६ औदारिक शरीर की उपरोक्त व्याख्याओं में चौथी व्याख्या सदोष और अपूर्ण है। क्योंकि एकेन्द्रिय जीवों के शरीर में तथाकथित हाड़ और मांस नहीं होते फिर भी वे औदारिक शरीरी हैं। औदारिक शरीर की तीसरी व्याख्या भी व्यापक नहीं । औदारिक शरीर स्थूल पदार्थों का ही बना हुआ होता है ऐसी कोई बात नहीं है। सूक्ष्म वायुकाय का शरीर भी औदारिक है, पर सब स्थूल पदार्थों का बना हुआ नहीं कहा जा सकता। उदर से उत्पन्न जीवों के ही नहीं परन्तु सम्मूच्छिम जीवों के शरीर भी औदारिक हैं अतः यह तीसरी व्याख्या भी सदोष मालूम देती है। . दूसरी व्याख्या भी कृत्रिम-सी लगती है। पहली व्याख्या काफी व्यापक है और औदारिक शरीर का ठीक-ठीक परिचय देती ___ वैक्रिय शरीर : उस शरीर को कहते हैं जो कभी छोटा, कभी बड़ा, कभी पतला, कभी मोटा, कभी एक, कभी अनेक इत्यादि विविध रूपों की-विक्रिया को धारण कर सके। यह शरीर देवता और नारकीय जीवों को होता है। पन्नवणा में वायुकाय को वैक्रिय शरीर भी कहा गया है। आहारक शरीर : जो शरीर केवल चतुर्दश पूर्वधारी मुनि द्वारा ही रचा जा सकता है उसे आहारक शरीर कहते हैं। तेजस् शरीर : जो शरीर गर्मी का कारण है और आहार पचाने का काम करता है उसे तेजस् शरीर कहते हैं । शरीक के अमुक-अमुक अंग रगड़ने से गरम मालूम देते हैं। कार्मण शरीर : कर्म-समूह ही कार्मण शरीर है। जीवों के साथ लगे हुए आठ प्रकार के कर्मों का विकार रूप तथा सब शरीरों का कारण रूप, कार्मण शरीर कहलाता है। जीव जिन आठ कर्मों से अववेष्ठित होता है, उनके समूह को कार्मण शरीर कहते हैं। कोई भी सांसारिक जीव तेजस् और कार्मण १. तत्त्वार्थसूत्र (गुज० तृ० आ०) पृ० १२१ २. पण्णवणा : १२ शरीर पद १ ३. श्रीमद् राजचन्द्र भाग २ पृ० ६८६ अंक १७५ ४. तत्त्वार्थसूत्र (गुज० तृ० आ०) पृ० १२१ ५. नवतत्त्व पृ० १६
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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