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________________ १०८ नव पदार्थ १ : आठ कर्म पुदगल दो तरह के होते हैं : एक वे जिनको आत्मा अपने प्रदेशों से ग्रहण कर सकती है और दूसरे वे जो आत्मा द्वारा अपने प्रदेशों में ग्रहण नहीं किए जा सकते। प्रथम प्रकार के पुद्गल आत्म-प्रदेशों में प्रवेश कर वहीं स्थित हो जाते हैं। इन्हें पारिभाषिक शब्द में कर्म कहा जाता है। कर्म आठ हैं, जिनके अलग-अलग स्वभाव होते हैं। (१) ज्ञानावरणीय कर्म ज्ञान को रोकता है। (२) दर्शनावरणीय कर्म दर्शन को रोकता है। (३) वेदनीय कर्म सुख-दुःख का अनुभव कराता है। (४) मोहनीय कर्म जीव को मतवाला बना देता है। (५) आयुष्य कर्म जीव की आयु नियत करता है। (६) नाम कर्म जीव की ख्याति, उसके स्वभाव, उसकी लोकप्रियता आदि को निश्चित करता है। (७) गोत्र कर्म, कुल-जाति आदि को निश्चित करता है और (८) अंतराय कर्म से बाधाएँ आती हैं। २ : पाँच शरीर शरीर पाँच होते हैं (१) औदारिक शरीर, (२) वैक्रिय शरीर, (३) आहारक शरीर, (४) तैजस् शरीर और (५) कर्मण शरीर'। औदारिक शरीर : इसकी कई व्याख्याएँ की जाती हैं, जैसे : १. जो शरीर जलाया जा सके और जिसका छेदन-भेदन हो सके वह औदारिक शरीर है। २. उदार अर्थात् बड़े-बड़ें अथवा तीर्थंकरादि उत्तम पुरुषों की अपेक्षा से उदारप्रधान पुद्गलों से जो शरीर बनता है उसे 'औदारिक' कहते हैं। मनुष्य, पशु, पक्षी आदि का शरीर औदारिक कहलाता है। ३. उदरण का अर्थ स्थूल होता है। जो शरीर स्थूल पदार्थों का बना होता है उसे औदारिक शरीर कहते हैं । औदारिक शब्द की उत्पत्ति उदर शब्द से भी हो सकती है। इसलिए उदर-जात का औदारिक शरीर कहा जायेगा। . ४. जिसमें हाड़, मांस, रक्त, पीब, चर्म, नख, केश, इत्यादिक हों तथा जिस शरीर से जीव कर्म क्षय कर मुक्ति पा सके। १. पण्णवणा : १२ शरीर पद १ २. तत्त्वार्थसूत्र (गुज० तृ० आ०) पृ० १२० ३. नवतत्त्व (हिन्दी भाषानुवाद-सहित) पृ० १५ 8. Panchastkayasara (English) Edited by A. Chakarvarti. p. 88 ५. श्री नवतत्त्व अर्थ विस्तार सहित (प्रकाशक जे० जे० कामदार) पृ० ३४।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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