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________________ अजीव पदार्थ : टिप्पणी ३१ १. शब्द : शब्द का अर्थ है ध्वनि, भाषा । शब्द दो तरह से उत्पन्न होता है- (१) पुद्गलों के संघात से और (२) पुद्गलों के भेद से' । जब पुद्गल आपस में टकराते हैं। या एक दूसरे से अलग होते हैं तो शब्द की उत्पत्ति होती है। इस तरह शब्द प्रत्यक्ष ही पुद्गलों की पर्याय है । शब्द के अनेक प्रकार के वर्गीकरण मिलते हैं : १. (१) प्रायोगिक - जो शब्द आत्मा के प्रयत्न से उत्पन्न होते हैं, उन्हें प्रायोगिक कहते हैं । जैसे वीणा, ताल आदि के शब्द । १११ (२) वैश्रसिक- जो शब्द बिना प्रयत्न स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होते हैं उन्हें वैसिक कहते हैं । जैसे बादलों की गर्जना । २. (१) जीव शब्द - जीवों की आवाज, भाषा आदि । (२) अजीव शब्द - बादलों की गर्जना आदि । (३) मिश्र शब्द - जीव- अजीव दोनों के मिलने से उत्पन्न शब्द | जैसे शंख ध्वनि । ३. तीसरे वर्गीकरण के अनुसार शब्द के दस भेद इस प्रकार हैं : (१) निर्हारी - घोष पूर्ण शब्द; जैसे घंटे का शब्द; (२) पिण्डिम - घोष रहित - ढोल आदि का शब्द; (३) रूक्ष - काक आदि का शब्द; (४) भिन्न - तुतले शब्द; (५) जर्जरित - वीणा आदि के शब्द; (६) दीर्घ - मेघ-ध्वनि के से शब्द अथवा दीर्घवर्णाश्रित शब्द; (७) ह्रस्व मंद अथवा ह्रस्व वर्णाश्रित शब्द; (८) पृथकत्व - भिन्न-भिन्न स्वरों के मिश्रण वाला शब्द; (६) काकली - कोयल का शब्द और (१०) किंकिणीस्वर - नूपुर आभूषण आदि का शब्द ' । १. ठाणाङ्ग २.३.८१ : दोहि ठाणेहिंसद्दुप्पाते सिया, तंजहा - साहन्नताण चेव पुग्गलाणं सप्पासिया भिज्जंताण चेव पोग्गलाणं सद्दुप्पाये सिया २. पञ्चास्तिकाय १.७६ की जयसेन टीका : "उप्पादिगो प्रायोगिक पुरुषादिप्रयोग प्रभवः णियदो" नियतो वैश्रसिको मेघादिप्रभवः ३. ठाणाङ्गः ७.५
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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