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अजीव पदार्थ : टिप्पणी २६-२७-२८
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२६-२७. लोक में पुद्गल सर्वत्र हैं। वे गतिशील हैं (गा० ५१) :
पुद्गल के दो प्रदेशों से लगाकर अनन्त प्रदेशों तक के स्कंध होते हैं। ये स्कंध एक समान स्थान न लेकर भिन्न-भिन्न परिमाण में लोकाकाश क्षेत्र को रोक सकते हैं। अतः स्कंध लोकाकाश के एक देश में होते हैं और पुद्गल-परमाणु लोक में सर्वत्र; अथवा बादर लोक के एक देश में और सूक्ष्म सर्व लोक में होते हैं। अतः सामान्य दृष्टि से पुदगल का स्थान तीन लोक नियत है। पुद्गल तीनों लोकों में खचाखच भरे हुए हैं। थोड़ी भी जगह पुद्गल से खाली नहीं है। ये पुद्गल गतिशील हैं और एक स्थान पर स्थिर नहीं रहते।
एक बार गौतम के प्रश्न के उत्तर में श्रमण भगवान महावीर ने बतलाया : परमाणु-पुद्गल एक समय में लोक के पूर्व अन्त से पयिचम अन्त, पश्चिम अन्त से पूर्व अंत, दक्षिण अन्त से उत्तर अन्त और उत्तर अन्त से दक्षिण अन्त, ऊपर के अन्त से नीचे के अंत और नीचे के अन्त से ऊपर के अन्त में जाते हैं। परमाणु-पुद्गल की गति कितनी तीव्र है उसका अन्दाज इस उत्तर से हो जाता है।
२८. पुद्गल के चारों भेदों की स्थिति (गा० ५२ ) :
स्कंध, देश, प्रदेश और परमाणु की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति का वर्णन इस गाथा में किया गया है। अपनी स्थिति के बाद स्कंध, देश और प्रदेश उसी अवस्था में नहीं रहते परन्तु भेद, संघात या भेदसंघात के सहारे अवस्थान्तरित हो जाते हैं। भेद के सहारे स्कंध छोटा हो जाता है या अणुरूप, संघात से दूसरे स्कंध या परमाणु से मिल कर और बड़ा स्कंध रूप हो जाता है, भेदसंघात से छोटा स्कंध या परमाणु रूप होकर फिर स्कंध रूप हो जाता है। इस तरह स्कंध, देश और प्रदेश परमाणु-पुद्गल की पर्याय हैं। स्कंधादि की उत्पत्ति परमाणु से होती है इसलिये स्कंधादि भेद पर्याय ही हैं।
१.
उत्त० ३६.११
लोएगदेसे लोए य, भइयव्वा ते उ खेत्तओ।। सुहमा सव्वलोगम्मि, लोग देसे य बायरा ।।
२. भगवती १८.१०