________________
१०६
नव पदार्थ
परमाणु द्रव्यों का बना हुआ नहीं होता इसलिए नित्य है, अनुत्पन्न है, फिर भी स्कंध या देश के भेद से परमाणु निकलता है इस दृष्टि से परमाणु की स्कंध से अलग स्थिति पर्याय है। इसीलिए अलग हुए परमाणु की स्थिति को भाव- पुद्गल कहा गया है। "कभी स्कंध के अवयव रूप बन सामुदायिक अवस्था में परमाणुओं का रहना और कभी स्कंध से अलग होकर विशकलित (स्वतन्त्र) अवस्था में रहना यह सब परमाणु की पर्याय- अवस्था विशेष ही है ।"
स्कंध, देश, प्रदेश और परमाणु अपने-अपने स्कंधादि रूप में कम-से-कम एक समय और अधिक-से-अधिक असंख्यात काल तक रहते हैं। स्वामीजी के इस कथन का आधार भगवती सूत्र है ।
२९. स्कंधादि रूप पुद्गलों की अनन्त पर्यायं ( गा० ५३ ) :
'पूरणगलन धर्माणः पुद्गलः पूरण-गलन जिसका स्वभाव हो, उसे पुद्गल कहते हैं अर्थात् जो इकट्ठे होकर मिल जाते हैं और फिर जुदे-जुदे हो बिखर जाते हैं वे पुद्गल हैं। इकट्ठा होना और बिखर जाना पुद्गल द्रव्य का स्वभाव है। इस मिलने-बिछुड़ने से पुद्गल के अनेक तरह के भाव - रूपान्तर होते हैं। अनेक तरह की पौद्गलिक वस्तुएँ उत्पन्न होती हैं। इस तरह उत्पन्न पौद्गलिक पदार्थ भाव पुद्गल हैं । भिन्न-भिन्न स्कंधादि रूप में इनकी अनन्त पर्यायें - अवस्थाएँ होती हैं।
३०. पौद्गलिक वस्तुएँ विनाशशील होती हैं (गा० ५४ ) :
1
पुद्गल दो तरह के होते हैं- एक द्रव्य - पुद्गल दूसरे भाव पुद्गल । द्रव्य-पुद्गल-मूल पदार्थ है। उनका विच्छेद नहीं हो सकता। चूंकि वे किन्हीं दो पदार्थों के बने हुये नहीं होते अतः उनमें से अन्य किसी वस्तु को प्राप्त करना असम्भव है । ये किन्हीं पदार्थों के कार्य (Product) नहीं होते पर अन्य पदार्थों के कारण (Constituent) होते हैं। इन द्रव्य पुद्गलों से बनी हुई जो भी वस्तुएँ होती हैं उन्हें भाव-पुद्गल कहते हैं । द्रव्य-पुद्गल की सब परिणतियाँ-पर्यायें भाव- पुद्गल हैं। हम अपने चारों ओर जो भी जड़ वस्तुएँ देखते हैं वे सभी पौद्गलिक हैं अर्थात् द्रव्य-पुद्गल से निष्पन्न हैं और भाव- पुद्गल हैं।
१. तत्त्वार्थसूत्र (गुज०) ५.२७ की व्याख्या पृ० २२२
२.
भगवती ५.७ : जहण्णेणं एगं समयं उक्कोसेवं असंखेज्ज कालं, एवं जाव अणतपएसिओ !