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________________ १०४ नव पदार्थ प्रदेशी स्कन्ध लोकाकाश के एक प्रदेश क्षेत्र में समा सकता है और वही स्कंध एक-एक प्रदेश में फैलता हुआ लोकव्यापी हो सकता। पुद्गल-स्कंध के स्थान-ग्रहण के सम्बन्ध में प्रज्ञाचक्षु पं० सुखलालजी ने बड़ा अच्छा प्रकाश डाला है'। उसको यहाँ उद्धृत किया जाता है : “पुद्गल द्रव्य का आधार सामान्य रूप से लोकाकाश ही नियत है। फिर भी विशेष रूप से भिन्न-भिन्न पुद्गल द्रव्यों के आधार क्षेत्र के परिमाण में फर्क है। पुद्गल द्रव्य कोई धर्म, अधर्म द्रव्य की तरह मात्र एक व्यक्ति तो है ही नहीं कि जिससे उसके लिए एकरूप आधार क्षेत्र होने की सम्भावना की जा सके। भिन्न-भिन्न व्यक्ति होने से पुद्गलों के परिमाण में विविधता होती है, एकरूपता नहीं। इसलिए यहाँ इसके आधार का परिमाण विकल्प से अनेक रूप में बताया गया है। कोई पुद्गल लोकाकाश के एक प्रदेश में तो कोई दो प्रदेश में रहते हैं। इस प्रकार कोई पुद्गल असंख्यात प्रदेश परिमित लोकाकाश में भी रहते हैं। सारांश यह है कि आधारभूत क्षेत्र के प्रदेशों की संख्या आधेयभूत पुद्गल द्रव्य के परमाणु की संख्या से न्यून अथवा इसके बराबर हो सकती है; अधिक नहीं। इसीलिए एक परमाणु एक सरीखे आकाश प्रदेश में स्थित रहता है; परन्तु द्वयणुक एक प्रदेश में भी रह सकता है और दो में भी। इस प्रकार उत्तरोत्तर संख्या बढ़ते-बढ़ते द्वयणुक, चतुरणुक इस तरह संख्याताणुक स्कन्ध तक एक प्रदेश, दो प्रदेश, तीन प्रदेश इस तरह असंख्यात प्रदेश तक के क्षेत्र में रह सकता है, संख्यातणुक द्रव्य की स्थिति के लिये असंख्यात प्रदेश वाले क्षेत्र की आवश्यकता नहीं होती । असंख्यातणुक स्कंध एक प्रदेश से लेकर अधिक से अधिक अपने बराबर के असंख्यात संख्या वाले प्रदेशों के क्षेत्र में रह सकते हैं। अनन्ताणुक और अनन्तानंताणुक स्कंध भी एक प्रदेश, दो प्रदेश इत्यादि क्रम से बढ़ते-बढ़ते संख्यात प्रदेश या असंख्यात प्रदेश वाले क्षेत्र में रह सकते हैं। इसकी स्थिति के लिये अनन्त प्रदेशात्मक क्षेत्र की जरूरत नहीं। पुद्गल द्रव्य के सबसे बड़े स्कंध सिद्धिशिला जिसको अचित महास्कंध कहा जाता है और जो अनंतानंत अणुओं का बना हुआ होता है वह भी असंख्यात प्रदेश लोकाकाश में ही समाता है। १. तत्त्वार्थसूत्र (गुज०) सू० १४ की व्याख्या
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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