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________________ अजीव पदार्थ : टिप्पणी २२-२३ व्यवहार करना हो और कोई करे तो वह मनुष्य लोक में प्रसिद्ध व्यवहार के आधार पर ही कर सकता है। क्योंकि व्यावहारिक काल विभाग का मुख्य आधार नियत क्रिया है । ऐसी क्रिया सूर्य, चन्द्र आदि ज्योतिष्कों की गति है । परन्तु मनुष्य लोक के बाहर के सूर्य आदि ज्योतिष्क स्थिर हैं। इस कारण उनकी स्थिति और प्रकाश एक रूप है। ६५ २२. काल की अनन्त पर्यायें और समय अनन्त कैसे ? ( गा० ४०-४२) : इन गाथाओं में स्वामीजी ने दो बातें कहीं हैं : (१) काल की अनन्त पर्यायें हैं । (२) एक ही समय अनन्त कहलाता है । इनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है : (१) काल का क्षेत्र ढाई द्वीप है । ढाई द्वीप में जीव अजीव अनन्त हैं । काल उन सब पर वर्तन करता है। उनमें जो अनन्त परिणाम पर्यायें उत्पन्न होती हैं वे काल द्रव्य निमित्त से ही होती हैं । अनन्त द्रव्यों पर वर्तन करने से काल की पर्याय संख्या अनन्त कही गई है। (२) वर्तमान काल सदा एक समय रूप होता है। यह एक समय ही अनन्त द्रव्यों में से प्रत्येक पर वर्तन करता है। समय जिन द्रव्यों पर वर्तन कर रहा है उन द्रव्यों की अनन्त संख्या की अपेक्षा से एक ही समय को अनन्त कहा गया है। उदाहरण स्वरूप किसी सभा में हजार व्यक्ति उपस्थित हैं और सभापति एक मिनट विलम्ब से पहुँचे तो एक मिनट विलम्ब होने पर भी एक-एक व्यक्ति के एक-एक -मिनट का योग कर यह कहा जा सकता है कि वह हजार मिनट लेट है। इसी तरह एक-एक वस्तु पर एक समय गिनकर एक ही समय को अनन्त कहा गया है । २३. रूपी पुद्गल ( गा० ४३ - ४५ ) : इन गाथाओं में चार बातें कही गई हैं : (१) पुद्गल रूपी द्रव्य है । (२) द्रव्यतः पुद्गल अनन्त है। (३) द्रव्यतः पुद्गल है और भावतः अशाश्वत ।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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