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नव पदार्थ
१६. काल का क्षेत्र (गा० २७) : .
एक बार गौतम ने पूछा-“भगवन् ! समय क्षेत्र किसे कहा जाय ?" महावीर ने कहा-“गौतम ! ढाई द्वीप और दो समुद्र इतना समय क्षेत्र कहलाता है'।" उत्तराध्ययन में समय-क्षेत्र की चर्चा करते हुए कहा है : “समए समयखेत्तिए (३६.७)" | समय-क्षेत्र का वर्णन इस प्रकार है :
जम्बुद्वीप, जम्बुद्वीप के चारों ओर लवण समुद्र, उसके चारों ओर धातकी खण्ड, उसके चारों ओर कलोदधि समुद्र और उसके चारों ओर पुष्कर द्वीप है। इस पुष्कर द्वीप को मानुषोत्तर पर्वत दो भाग में विभक्त करता है। कालोदधि समुद्र तक और उसके चारों ओर के अर्द्ध पुष्कर द्वीप तक के क्षेत्र को समय-क्षेत्र कहते हैं। इसका दूसरा नाम ढाई द्वीप है। इसे मनुष्य क्षेत्र भी कहते हैं।
समय क्षेत्र का आयाम निष्कंभ ४५ लाख योजन प्रमाण है।
काल का माप सूर्य आदि की गति पर से स्थिर किया जाता है। मनुष्य के क्षेत्र में जहाँ सूर्य गति करता है वहीं काल के दिवस आदि व्यवहार की प्रसिद्धि है। मनुष्य क्षेत्र के बाहर सूर्य स्थिर होने से काल का माप करना असंभव है। बाद में आने वाली टिप्पणी न० २१ में इसका विशेष स्पष्टीकरण है।
इस विषय में गौतम और महावीर का वार्तालाप बड़ा रोचक है। उसे यहां उद्धृत किया जाता है :
“भगवन् ! क्या वहाँ (नरक में) गये नैरयिक यह जानते हैं-यह समय है, यह . आवलिका है, यह उत्सर्पिणी है, यह अवसर्पिणी है ?"
“गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं।" "ऐसा किस हेतु से कहते हैं भगवन् !"
“गौतम ! इस मनुष्य-क्षेत्र में ही समयादि का मान है, इस मनुष्य-क्षेत्र में ही समयादि का प्रमाण है, इस मनुष्य क्षेत्र में ही समयादि के बारे में ऐसा जाना जाता है कि यह समय है, यह आवलिका है, यह उत्सर्पिणी है, यह अवसर्पिणी है। चूंकि नरक में ऐसी बात नहीं इसलिए कहा है-नरक में गये नैरयिक यह जानते हैं-यह समय है,
१. भगवती २.६ २. सम० सू० ४५ :
समयखेत्त णं पणयालीसं जोयणसयसहस्साइं आयामविक्खंभेणं पन्नत्ते।