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________________ अजीव पदार्थ : टिप्पणी १५ ८७ में जाते हुए उस नोक को जितना वक्त लगता है वह असंख्यात समय रूप है। काल के तीन भाग होते हैं-अतीत, वर्तमान और अनागत' । वर्तमान काल में हमेशा एक समय उपस्थित रहता है। अतीत में ऐसे अनन्त समय हुए हैं। आगामी काल में अनन्त समय होंगे। १५. काल द्रव्य शाश्वत-अशाश्वत कैसे ? (गा० २३-२६) : प्रथम ढाल में जीव को शाश्वत-अशाश्वत कहा गया है। इन गाथाओं में काल किस तहर शाश्वत-अशाश्वत है यह बताया गया है। वर्तमान समय में काल द्रव्य है; अतीत समयों में से प्रत्येक काल द्रव्य रहा; अनागत समयों में प्रत्येक में काल द्रव्य रहेगा। काल द्रव्य एक के बाद एक उत्पन्न होता रहता है। उत्पत्ति के इस सतत प्रवाह की दृष्टि से काल द्रव्य शाश्वत है। वह अनादि अनन्त है, उत्पन्न काल द्रव्य नाश को प्राप्त होता है और फिर नया काल द्रव्य उत्पन्न होता है। इस उत्पत्ति और विनाश की दृष्टि से काल द्रव्य अशाश्वत है। काल के सूक्ष्मतम-अंश समय के सम्बन्ध में जैसे यह बात लागू पड़ती है वैसे ही आवलिका आदि काल के अन्य विभागों के विषय में भी समझना चाहिए। काल की शाश्वतता-अशाश्वतता के विषय में दिगम्बराचार्यों ने निम्न बात कही है-“व्यवहार काल जीव, पुदगलों के परिणाम से उत्पन्न है। जीव, पुद्गल का परिणाम द्रव्य काल से संभूत है। निश्चय और व्यवहार काल का यह स्वभाव है कि व्यवहार काल समय विनाशीक है और निश्चय काल नियत-अविनाशी है। 'काल' नाम वाला निश्चय काल नित्य है-अविनाशी है। दूसरा जो समय रूप व्यवहार काल है वह उत्पन्न और विध्वंसशील है । वह समयों की परम्परा से दी(तरस्थायी भी कहा जाता है।" १. ठाणाङ्ग सू० ३.४. १६२ २. उत्त०३६.६ : समए वि सन्तई पप्प एवमेव वियाहिए। आएसं पप्प साईए सपज्जवसिए वि या।। ३. पञ्चास्तिकाय : १,१००-१०१ : कालो परिणामभवो परिणामो दव्वकालसंभूदो। दोण्हं एस सहावो कालो खणभंमुरो णियदो।। कालो त्ति य ववदेसो सभावपरूवगो हवदि णिच्चो। उप्पण्णप्पद्धंसी अवरो दीहंतरट्ठाई।।
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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