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________________ ८६ हेमचन्द्राचार्य के सिवा श्वेताम्बर आचार्यों के काल को संख्या की दृष्टि से अनन्त ही माना है' । स्वामी जी ने आगमिक दृष्टि से कहा है : "काल के द्रव्य अनन्त हैं ।" (३) काल निरन्तर उत्पन्न होता रहता हैं : जैसे माला का एक मनका अंगुलियों से छूटता है और दूसरा उसके स्थान में आ जाता है। दूसरा छूटता है और तीसरा अंगुलियों के बीच में आ जाता है उसी तरह वर्तमान क्षण जैसे बीतता है वैसे ही नया क्षण उपस्थित हो जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो रहँटघटिका की तरह एक के बाद एक काल द्रव्य उपस्थित होता रहता है । यह सन्तति-प्रवाह अतीत में चालू रहा, अब भी चालू है, भविष्य में भी इसी रूप में चालू रहेगा । यह प्रवाह अनादि अनन्त है । इस अपेक्षा से काल द्रव्य सतत् उत्पन्न होता रहता है। ( ४ ) वर्तमान काल एक समय रूप है : काल द्रव्य की इकाई को जैन पदार्थ-विज्ञान में 'समय' कहा गया है। समय काल का सूक्ष्मतम अंश है। सुतीक्ष्ण शस्त्र से छेदन करने पर भी इसके दो भाग नहीं किये जा सकते । I समय की सूक्ष्मता की कल्पना निम्न उदाहरण से होगी । वस्त्र तंतुओं से बनता है । प्रत्येक तंतु में अनेक रूए होते हैं । उनमें ऊपर का रूआ पहले छिदता है, तब कहीं नीचे का रूआ छिदता है। इस तरह सब रूओं के छिदन पर तंतु छिदता है और सब तंतुओं के छिदने पर वस्त्र एक कला कुशल युवा और बलिष्ठ जुलाहा जीर्ण-शीर्ण वस्त्र को शीघ्रता से फाड़े तो तन्तु के पहले रूए के छेदन में जितना काल लगता है। वह सूक्ष्म काल असंख्यात समय रूप है । इसी तरह के कमल -पत्र एक दूसरे के ऊपर रखे जायें और उन्हें वह युवक भाले की तीखी नोंक से छेदे तो एक-एक पत्र से दूसरे पत्र १. २. नव पदार्थ (क) सप्ततत्त्व प्रकरणम् (देवानन्द सूरि ) : पुग्गला अद्धासमया जीवा य अणंता (ख) नवतत्त्वप्रकरणम् ( उमास्वाति ) : धर्माधर्माकाशान्येकैकमतः परं त्रिकमनन्तम् भगवती ११.१० : अद्धादोहारच्छेदेणं छिज्जमाणी जाहे विभागं नो हव्वमागच्छइ सेत्तं समए ३. अनुयोग द्वार पृ० १७५
SR No.006272
Book TitleNav Padarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1998
Total Pages826
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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